________________ वाचक प्रमोदचन्द्र भास संग्रहगत स्फुट पत्रों में यह एक-पत्रात्मक कृति प्राप्त है। साइज 2441045 से०मी० है / पंक्ति 15 हैं और अक्षर 43 से 46 हैं। प्रति का लेखन सं० 1745 है। इस कृति के कर्ता करमसीह हैं, जो सम्भवतः वाचक प्रमोदचन्द्र के शिष्य हों या भक्त हों। इस कृति का महत्त्व इसलिए अधिक है कि वाचक प्रमोदचन्द्र का स्वर्गवास वि० सं० 1743 में हुआ था और यह पत्र 1745 में लिखा गया है। सम्भवतः लेखक का वाचकजी के साथ सम्बन्ध भी रहा हो। इस भास का सारांश निम्नलिखित है: भासकार करमसीह जिनेन्द्र भगवान् और प्रमोदचन्द्र वाचक को नमन कर कहता है कि इनके . . नाम से पाप नष्ट हो जाते हैं और निस्तार भी हो जाता है। वाचक प्रमोदचन्द्र का जीवनवृत्त देते हुए लेखक लिखता है - मरुधर देश में रोहिठ नगर है, जहाँ ओसवंशीय तेलहरा गोत्रीय साहा राणा निवास करते हैं और उनकी पत्नी का नाम रयणादे है। इनके घर में वि० सं० 1670 में इतका जन्म हुआ और माता-पिता ने इस बालक का नाम पदमसीह रखा। श्रीपूज्य जयचन्द्रसूरि वहाँ पधारे। साहा राणा ने अपने पुत्र प्रमोदसीह के साथ विक्रम सम्वत् 1686 में दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा का महोत्सव जोधपुर नगर में हुआ। निरतिचार पञ्च महाव्रत का पालन करते हुए राणा मुनि का स्वर्गवास वि०सं० 1700 में हुआ। पदमसीह मुनि श्री जयचन्द्रसूरि के शिष्य थे। सम्भवतः इनकी माता ने भी दीक्षा ग्रहण की और लखमा नाम रखा गया। मुनि पदमसीह वि०सं० 1631 में वाचक बने, वि०सं० 1743 में मुनि पदमसीह अन्तिम चातुर्मास करने के लिए जोधपुर आए और उन्होंने अनशन ग्रहण किया। ढाई दिन का अनशन पाल कर पौष दशमी सम्वत् 1743 में इनका स्वर्गवास हुआ। देवलोक का सुख भोगकर अनुक्रम से भव-संसार को पार करेंगे। प्रमोदचन्द्र 16 वर्ष गृहवास में रहे, 45 वर्ष ऋषिपद में रहे और 12 वर्ष तक वाचकपद को शोभित किया। इनकी पूर्ण आयु 73 साल थी। इन्हीं के चरण सेवक करमसीह ने यह भास लिखा है। नागपुरीय तपागच्छ पट्टावली के अनुसार भगवान् महावीर से ६२वें पट्टधर श्री जयचन्द्रसूरि हुए। यह बीकानेर निवासी ओसवाल जेतसिंह और जेतलदे के पुत्र थे। वि०सं० 1674 में राजनगर में इन्हें आचार्यपद मिला था और वि०सं० 1699, आषाढ़ सुदि पूनम को जयचन्द्रसूरि का स्वर्गवास हुआ था। इस पट्टावली के अनुसार यह निश्चित है कि वाचक प्रमोदचन्द्र ऋषि नागपुरीय तपागच्छ/पार्श्वचन्द्र गच्छीय थे और श्री जयचन्द्रसूरि के शिष्य थे। श्री जयचन्द्रसूरि के पट्टधर श्री पद्मचन्द्रसूरि (आचार्य पद 1699 और स्वर्गवास 1744) ने ऋषि पदमसीह को सम्वत् 1731 में आचाय पद प्रदान किया था। वाचक प्रमोदचन्द्र की कोई रचना प्राप्त नहीं है। इनके सम्बन्ध में और कोई जानकारी प्राप्त हो तो पार्श्वचन्द्रगच्छीय मुनिराजों से मेरा अनुरोध है कि वे उसे प्रकाशित करने का कष्ट करें। इस भास के दूसरी ओर मिष्टान्नप्रिय जोध नामक यति ने नागौर की प्रसिद्ध मिठाई पैडा का गीत 15 पद्यों में लिखा है :168 लेख संग्रह