________________ // ढाल-अलवेला री॥ श्री जिन पय प्रणमी करी रे लाल। गाइस गुरु गुणसार, सुखकारी रे॥ श्री प्रमोदचंद वाचकवरु रे लाल। नाम थकी निसतार॥ सु० 1 // श्री प्रमोदचंद पय प्रणमीयइ रे लाल। नाम थकी निसतार। सु० / सुख संपति सहितै मिलै रे लाल। दरसण दुरित पुलाई // सु० 2 // मरुधर देस सुहामणौ रे लाल। रोहिठ नगर विख्यात। सु० / साह रांणा कुल चंदलौ रे लाल। रयणादे जसु मात॥ सु० 3 // सौलैसै सितरै समै रे लाल। जनम दिवस सुद्ध मास। सु०। मात पिता हरखै घणुं रे लाल। उछव करै उल्हास // सु० 4 // बीया चंद तणी परै रे लाल। वधता बहु गुणवंत। सु०। पदमसीह मख पेखता रे लाल। सजन सह हरखंत॥ सु० 5 // श्रीपूज्य पधाऱ्या प्रेमसुं रे लाल। श्री जयचन्द सूरिन्द। सु०। साह. रांणौ वयरागीया रे लाल। पुत्र पुत्र सु आणंद॥ सु० 6 // जोधपुर नगर सुहामणौ रे लाल। दिक्षा महोछव सार। सु०। संघ जीमावी हरखसुं रे लाल। विलसी धन विस्तार // सु० 7 // 'पंच महाव्रत पालता रे लाल। चारित्र निरतिचार। सु०। रांणै मुनि सुरगति लही रे लाल। सतरसईकै सार // सु० 8 // श्री पदमसीह मुनि परगडा रे लाल। श्री जयचंदसूरि सीस। सु०। सोहै लखमां साधवी रे लाल। शिख शिखणी सुं जगीस॥ सु० 9 // महिमंडल विचरता रे लाल। तारण तरण जिहाज। सु०। सुमति गुपति व्रतधर सदा रे लाल। साधु गुणे सिरताज॥ सु० 10 // नयर जोधाणै आवीया रे लाल। जांणी चरम चोमास। सु०। सतरतयाल संवछरै रे लाल। श्रीमुख अणसण जास॥ सु० 11 // अढी दिवस पाली करी रे लाल। पोस दिसम जगिसार। सु०। सुरगति सुर सुह भोगवै रे लाल। अनुक्रमि भवनौ पार॥ सु० 12 // सोल वरस गृहवास मै रे लाल। रिख पद वरस पैताल। सु०। बार वरस वाचक पदै रे लाल। सर्वायु तिहोत्तर पाल॥ सु० 13 // धन ओसवंश अतिदीपतौ रे लाल। धन तेलहरा गोत। सु०। मात पिता धन जनमीया रे लाल। धन सुगुरु जगि जोत॥ सु० 14 // चरणकमल सेवक भणै रे लाल। प्रणमुंबे कर जोडि। सु०। करमसीह कृपा करी रे लाल। पूरौ वंछित कोडी॥ सु० 15 // इति श्री प्रमोदचंद्र वाचकभास सम्पूर्णः सं 1745 वर्षे लिखतं पं श्री आसकरण जी। लेख संग्रह 169