________________ माघ काव्य-दीपिकाकार ललितकीर्ति का समय जिन प्रतिभा कार्यालय, 806 चौपासनी रोड, जोधपुर से प्रकाशित मासिक पत्रिका 'जिन प्रतिभा' वर्ष 1, अंक 1, जून 1984 में डॉ. द. बा. क्षीर सागर का 'माघ काव्य : दुर्लभ टीका परिचय' शीर्षक से लेख प्रकाशित हुआ है। इस लेख में विद्वान् लेख ने माघ काव्य पर प्राप्त 15 टीका-टीकाकारों का नामोल्लेख करते हुए, राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर के संग्रह में प्राप्त दिनकर मिश्र, सरस्वती तीर्थ, विष्णुदासात्मज और ललितकीर्ति की टीका-प्रतियों का परिचय दिया है। प्रतिष्ठान की अधिग्रहण संख्या 40309 पत्र 141 [वस्तुतः १४१वाँ पत्र भिन्न टीका का पृथक् पत्र है] की प्रति का परिचय देते हुए लिखा है: "टीकाकार ललितकीर्ति गणि लब्धिकल्लोल गणि के शिष्य तथा कीर्तिरत्नसूरि के प्रशिष्य हैं। टीका का नाम 'ललित माघ दीपिका' अथवा 'सन्देहान्धकार ध्वंस दीपिका' दिया गया है। यथा पुष्पिका:इति श्री खरतरगच्छे वरेण्याचार्य श्रीकीर्त्तिरत्नसूरिसन्तानीय वाचनाचार्य-लब्धिकल्लोलगणि क्रमाम्भोज़-भृङ्गायमान शिष्यवाचनाचार्य-ललितकीर्त्तिगणिविरचितायां ललितमाघदीपिकायां विंशतिमः सर्गः सम्पूर्णः।" . खरतरगच्छ की शाखा-प्रशाखाओं के इतिहास का ज्ञान न होने के कारण लेखक ने 'कीर्ति रत्नसूरिसन्तानीय' का अर्थ कीर्त्तिरत्नसूरि के प्रशिष्य कर दिया है। यहाँ 'सन्तानीय' शब्द 'शिष्यपरम्परा में' का वाचक है। टीकाकार ललितकीर्ति का समय निर्धारण करने के लिये लेखक ने ऊहापोह करते हुए लिखा है:"पुरातत्त्वाचार्य मुनि जिनविजयजी ने खरतरगच्छ गुर्वावलि-प्रबन्ध में 1381 वि. में चतुर्विंशति जिनालय स्थापना के क्षुल्लक षट्क में ललितकीर्ति का उल्लेख किया है। अतः ललितकीर्ति यदि ये ही वे हैं, तो १४वीं शती के पूर्वार्द्ध में होने चाहिए, जबकि नाथराम प्रेमी ने जैन साहित्य और इतिहास ललितकीर्ति का यशकीर्ति के गुरु के रूप में उल्लेख किया है। हरिश्चन्द्र कायस्थ कृत धर्मशर्माभ्युदय की एक सामान्य टीका की रचना यशकीर्ति ने की थी। इस टीका की एक पाण्डुलिपि सरस्वती भण्डार, बम्बई में उपलब्ध है तथा इसका लिपि समय 1652 वि. है। इनके अतिरिक्त ललितकीर्ति के विषय में अन्य प्रमाण दृष्टिगत नहीं हुआ है।" खरतरगच्छ गुर्वावलि प्रबन्ध में कीर्तिरत्नसूरि एवं लब्धिकल्लोल का उल्लेख न होने से ललित कीर्ति का समय १४वीं शती स्थापित नहीं किया जा सकता। और, पुष्पिका में 'खरतरगच्छे' उल्लेख होने से उन्हें दिगम्बर भी नहीं माना जा सकता। अस्तु। vx वस्तुतः इस ललित माघ दीपिका की अभी तक तीन प्रतियाँ ही उपलब्ध हुई हैं - 1. राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर, परिग्रहणांक 40309; 2. लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्या लेख संग्रह 163