________________ जिनविजय रचित नैषधीयचरित टीका की दुर्लभ प्रति जैन मुनिपुङ्गव बहुभाषाविद् और निखिल शास्त्रों/आगमों/दर्शनों के प्रौढ़ विद्वान् होते थे। ये मुनि श्रमण जीवन की साधना में रत रहते हुए श्रमण भगवान् महावीर की अनुपमेय वाणी का प्रचार-प्रसार करने भारत के समस्त प्रदेशों एवं स्थानों पर निरन्तर परिभ्रमण/विचरण करते रहते थे। साधना और वाणीप्रचार के साथ-साथ ये स्वयं समग्र विषयों के शास्त्रों का अध्ययन भी किया करते थे तथा श्रमण वर्ग को अध्ययन भी करवाते रहते थे। स्वान्तः-सुखाय अथवा अध्ययन हेतु मुनिगणों की अभ्यर्थना से परहिताय नूतन साहित्य का सर्जन या व्याख्या साहित्य का निर्माण भी करते रहते थे। साहित्य का कोई भी अंग इन . जैन विद्वानों से अछूता नहीं रहा कि जिस पर इन्होंने स्वतन्त्र रचना या व्याख्या का निर्माण न किया हो। जैन साहित्य को पृथक् रखकर देखें तो व्याकरण, काव्य, कोष, छन्द, लक्षणशास्त्र, न्यायदर्शन, आयुर्वेद, जयोतिष, वास्तु, रत्न, कामशास्त्र आदि विषयों पर इनके द्वारा गुंफित विपुल साहित्य आज भी प्राप्त है। .. संस्कृत साहित्य में अत्यधिक प्रसिद्धि प्राप्त पाँच महाकाव्यों के अनुकरण पर उसी कोटि के / अनेक महाकाव्य भी जैन मनीषियों द्वारा निर्मित प्राप्त होते हैं और इन पाँच महाकाव्यों के पादपूर्ति रूप काव्य भी अनेकों प्राप्त हैं। साथ ही इन पाँच महाकाव्यों पर जैन विद्वानों द्वारा रचित 40 से अधिक टीकायें भी प्राप्त होती हैं। इन्हीं पाँच महाकाव्यों में विश्रुत अप्रतिम-प्रतिभा सम्पन्न महाकवि श्री हर्ष प्रणीत नैषधीय-चरित नामक महाकाव्य संस्कृत साहित्य में अपना एक विशिष्ट गौरवपूर्ण स्थान रखता है। "नैषधे पदलालित्यम्" कहकर परवर्ती संस्कृत जगत के समस्त लेखकों ने इसको शीर्षस्थान प्रदान किया है और इस पर लगभग 25 से भी अधिक व्याख्यानकारों ने व्याख्याओं का निर्माण कर स्वयं की लेखिनी को कृतार्थ किया है। इन व्याख्याओं में 4 व्याख्यायें तो जैन मनीषियों के द्वारा रचित हैं: 1. मुनिचन्द्रसूरि सं० 1170 2. चारित्रवर्धनोपाध्याय सं० 1368 3. रत्नचन्द्रगणि सं० 1668 4. जिनराजसूरि १७वीं शती का अन्तिम चरण। इसी श्रृंखला में जिनविजय रचित नई व्याख्या भी प्राप्त होती है जो अद्यावधि अज्ञात रही है और जिसकी अभी तक एक मात्र प्रति ही प्राप्त हुई है। यह प्रति वर्तमान में 'महाराजा सवाई मानसिंह II संग्रहालय सीटि पैलेस (पोथीखाना) जयपुर में ग्रन्थांक 367 पर उपलब्ध है। साइज 24.6411.2 . सेन्टीमीटर है। त्रिपाठ है और ग्रन्थाग्रन्थ (शोक परिमाण) 24 हजार है। लेखन शुद्ध, अक्षर स्फीत और सुवाच्य हैं / दशा अच्छी है। लेखन काल अनुमानतः १८वीं शती का अन्तिम चरण अथवा १९वीं का प्रथम 158 लेख संग्रह