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________________ घटनायें, तथा 5 तीर्थंकरों की लोकान्तिक देवों की अभ्यर्थना, वार्षिक दान, दीक्षा, तपस्या, पारणक, केवलज्ञान प्राप्ति, देवों द्वारा समवसरण की रचना, उपदेश, निर्वाण, गणधर, पांचों कल्याणकों की तिथियों का उल्लेख, तथा रामचन्द्र एवं कृष्ण का युद्ध विजय, राज्य का सार्वभौमत्व एवं मोक्ष-स्वर्ग का उल्लेख आदि कथाओं की कड़ियें तो हैं ही, साथ ही प्रसंग में कई विशिष्ट घटनाओं का उल्लेख भी है। आदिनाथ चरित में - भरत को राज्य प्रदान, नमि-विनमि कृत सेवा, छद्मस्थावस्था में बाहुबली की तक्षशिला नगरी जाना, समवसरण में भरत का आना, भरत चक्रवर्ती का षट्खण्ड साधन, मगधदेश, सिन्धु नदी, शिल्पतीर्थ, तमिस्रा गुहा, हिमालय, गंगा, तटस्थ देश, विद्याधर विजय, भगिनी सुन्दरी की दीक्षा आदि का उल्लेख हैं। शान्तिनाथ के प्रसंग में - अशिवहरण, तथा षट्खण्ड विजय द्वारा चक्रवर्तित्व। नेमिनाथ - राजीमती का त्याग महावीर - गर्भहरण की घटना राम - भरत का अभिषेक, वनवास, शम्बूक का नाश, बालिवध, हनुमान की भक्ति, सीताहरण, जटायु विनाश, सीता की खोज, विभीषण का पक्षत्याग, युद्ध, रावणवध, सीतात्याग, सीता की अंग्निपरीक्षा और रामचन्द्र की दीक्षा आदि रामायण की प्रमुख घटनायें। कृष्ण - कंस वध, प्रद्युम्न वियोग, मथुरा निवास, प्रद्युम्न द्वारा उषाहरण, द्वारिका वर्णन, शिशुपाल एवं जरासंघ का वध, द्वारिका-दहन, शरीर-त्याग, बलभद्र का भम्रण और दीक्षा आदि कृष्ण सम्बन्धी प्रमुख घटनायें। इसके साथ ही कृष्ण एवं नेमिनाथ का पाण्डवों के साथ सम्बन्ध होने से पाण्डवों का चरित्र, वंशवर्णन, द्यूत, चीरहरण, वनवास, कीचकवध, अभिमन्यु का पराक्रम, महाभारत युद्ध एवं भीम द्वारा दुर्योधन का नाश आदि महाभारत की प्रमुख घटनाओं का उल्लेख भी इसमें प्राप्त है। प्रत्येक पद्य में व्यक्तियों के अनुसार एक विशेष्य और अन्य सब विशेषण ग्रहण करने से कथा प्रवाह अविकल रूप से चलता है, भंग नहीं होता है। अनेकार्थी कोषों की तथा टीका की सहायता के प्रवाह का अभंग रखना अत्यन्त दुरूह है। उदाहरणार्थ सातों पुरुषों के पिताओं के नाम एक ही पद्य में द्रष्टव्य हैं : अवनिपतिरिहासीद् विश्वसेनोऽश्वसेनो ऽप्यथ दशरथनाम्ना यः सनाभिः सुरेशः। बलिविजयिसमुद्रः प्रौढसिद्धार्थसंज्ञः प्रसृतमरुणतेजस्तस्य भूकश्यपस्य // 1-54 // आदिनाथ के पक्ष में: यहाँ नाभिराजा था। वह विश्वसेन संपूर्ण सेना का, अश्वसेन अश्वों की सेना का अधिपति, दशरथ दशों दिशाओं में कीर्तिरूपी रथ पर चढ़ा हुआ, सुरेश देवों का पूज्य, बलिविजयिसमुद्र पराक्रमियों पर विजय प्राप्त करने वाला, राजकीय मुद्रायुक्त, प्रौढसिद्धार्थसंज्ञ प्रवृद्ध, सम्पादित उद्देश्य एवं बुद्धियुक्त था। उसका भूकश्यप पृथ्वी में प्रजापति के समान तथा अरुणतेज सूर्य के सदृश प्रताप व्याप्त था। इसमें शान्तिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, महावीर, रामचन्द्र एवं कृष्ण के पक्ष में क्रमशः विश्वसेन, समुद्रविजय, अश्वसेन, सिद्धार्थ, दशरथ, भूकश्यप वंश में होने के कारण सूर्य के समान प्रतापी वसुदेव को / विशेष्य मानकर अन्य विशेषण ग्रहण करने से पद्यार्थ निष्पन्न होता है। 156 लेख संग्रह
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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