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________________ महोपाध्याय मेघविजय रचित सप्तसन्धान काव्य : संक्षिप्त परिचय वैक्रमीय १८वीं शताब्दी के दुर्धर्ष उद्भट विद्वानों में महोपाध्याय मेघविजय का नाम अग्रपंक्ति में रखा जा सकता है। जिस प्रकार महोपाध्याय यशोविजयजी के लिए - उनके पश्चात् आज तक नव्यन्याय का प्रौढ़ विद्वान दृष्टिगत नहीं होता है उसी प्रकार मेघविजयजी के लिए कहा जा सकता है कि उनके पश्चात् दो शताब्दियों में कोई सार्वदेशीय विद्वान नहीं हुआ है। इनकी सुललित सरसलेखिनी से निःसृत साहित्य का कोई कोना अछूता नहीं रहा है। महाकाव्य, पादपूर्ति काव्य, चरित्रग्रन्थ, विज्ञप्तिपत्र-काव्य, व्याकरण, न्याय, सामुद्रिक, रमल, वर्षाज्ञान, टीकाग्रन्थ, स्तोत्र साहित्य और ज्योतिष आदि विविध विधाओं पर पाण्डित्यपूर्ण सर्जन किया है। महोपाध्याय मेघविजय तपागच्छीय श्री कृपाविजयजी के शिष्य थे। तत्कालीन गच्छाधिपति श्री विजयदेवसूरि और श्री विजयप्रभसूरि को ये अत्यन्त श्रद्धा भक्ति की दृष्टि से देखते थे। इनका साहित्य सृजनकाल विक्रम संवत् 1709 से 1760 तक का है। (इनके विस्तृत परिचय के लिए द्रष्टव्य है - राजस्थान के संस्कृत महाकवि एवं विचक्षण प्रतिभासम्पन्न ग्रन्थकार महोपाध्याय मेघविजय; श्री मरुधरकेसरी मुनिश्री मिश्रीमलजी महाराज अभिनन्दन-ग्रन्थ) एक श्लोक के अनेक अर्थ करना, सौ अर्थ करना कितना कठिन कार्य है। द्विसन्धानादि काव्यों में कवियों ने प्रत्येक श्लोक के दो-दो अर्थ किये हैं। किन्तु मेघविजयजी ने सप्तसन्धान काव्य में प्रत्येक पद्य में आगत विशेषणों के द्वारा 7-7 अर्थ करके अपनी अप्रतिम प्रतिभा का उपयोग किया है। कवि कर्म के द्वारा दुरूहता पर भी विजय प्राप्त करना कविकौशल का परिचय कराता है। सप्त सन्धान महाकाव्य इन्हीं महाकवि की रचना है। इस काव्य का यहाँ संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है:___. “महो. मेघविजयजी ने सप्तसन्धान नामक महाकाव्य की रचना सं. 1760 में की है। इस काव्य की रचना का उद्देश्य बताते हुए लेखक ने प्रान्तपुष्पिका में कहा है - आचार्य हेमचन्द्रसूरि रचित सप्तसन्धान काव्य अनुपलब्ध होने से सज्जनों की तुष्टि के लिये मैंने यह प्रयत्न किया है। इस काव्य में 8 सर्ग हैं। काव्यस्थ समग्र पद्यों की संख्या 442 है। प्रस्तुत काव्य में ऋषभदेव, शांतिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, महावीर, रामचन्द्र, एवं यदुवंशी श्रीकृष्ण नामक सात महापुरुषों के जीवन चरित का प्रत्येक पद्य में अनुसन्धान होने से सप्तसन्धान नाम सार्थक है। महाकाव्य के लक्षणानुसार सज्जन-दुर्जन, देश, नगर, षड्ऋतु आदि का सुललित वर्णन भी कवि ने किया है। ___ काव्य में सात महापुरुषों की जीवन की घटनायें अनुस्यूत हैं, जिसमें से 5 तीर्थंकर हैं और एक बलदेव तथा एक वासुदेव हैं / सामान्यतया 7 के माता-पिता का नाम, नगरी नाम, गर्भाधान, स्वप्न दर्शन, दोहद, जन्म, जन्मोत्सव, लाञ्छन, बालक्रीड़ा, स्वयंवर, पत्नीनाम, युद्ध, राज्याभिषेक आदि सामान्य लेख संग्रह 155 11
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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