________________ ___नयं किमेनं हृदये निधाय, मदोद्धरं दुर्द्धरतेजसं तम्। आद्यः प्रभुर्बाहुबलिं निनाय, पदं पदं स्वेन समं समंगलम्॥ 24 // 42. रावणपार्श्वनाथ स्तोत्र - शार्दूलविक्रीडित छन्द में 9 पद्यों में रावणपुर स्थित पार्श्वनाथ * की स्तवना है। रावणपुर-संभवतः अलवर का ही दूसरा नाम है क्योंकि कवि ने इन्द्रप्रस्थ (दिल्ली) के निकट स्वीकार किया है:जाने तज्जनकात्मजाव्यतिकर प्रोद्भूयमानानया न्मत्वा त्वं ननु मंगमेव भगवन्नेतस्थले तस्थिवान् / सेवार्थं भुवि रावणाख्यनगरं तत्तेन संवासितं . पार्श्व चेन्द्रपथं सुतेन विहितं तेनेन्द्रजिच्छर्मणा // 5 // यह स्तोत्र 'महाचमत्कारिक वीशायन्त्रकल्प' नामक पुस्तक में प्रकाशित हो चुका है। गुर्जर भाषा की कृतियाँ 43. कुमति निराकरण हुण्डी स्तवन - 79 गाथा के इस स्तवन में दिगम्बर समाज की मान्यताओं का खण्डन है। श्रीमोहनलाल द० देशाई लिखित जैन गुर्जर कविओ भाग 3 के अनुसार इसकी प्रति महोपाध्याय रामलालजी संग्रह, बीकानेर में है। 44. पार्श्वनाममाला स्तवन -दीव में इसकी रचना हुई है। पद्य संख्या 35 है। सं० 1721 की लिखित प्रति से प्राचीन तीर्थमाला भाग 1 में प्रकाशित हुई है अत: सं० 1721 में इसकी रचना हुई है। 45. विजयदेवसूरि निर्माण स्वाध्याय - इसमें कवि ने विजयदेवसूरि का संक्षिप्त जीवनचरित्र प्रभाव आदि का उल्लेख करते हुए सं० 1712 आषाढ़ सुदि 10 को निर्वाण का विस्तार से आलेखन किया है। इसमें 4 ढालें हैं, दोहों सहित कुल गाथाएँ 52 हैं। जैन ऐतिहासिक रासमाला, भाग 2 में पृ० 102-107 में प्रकाशित हो चुका है। 46. विजयरत्नसूरि स्वाध्याय - इस स्वाध्याय में तत्कालीन गणनायक विजयरत्नसूरि के गुणों का कीर्तन किया गया है। गाथा 42 है। ऐतिहासिक सज्झायमाला भाग 1, पृ० 21-22 पर मुद्रित हो चुकी है। .. 47. कृपाविजयनिर्वाण रास - इसका उल्लेख अम्बालाल प्रेमचन्द्र शाह ने दिग्विजय महाकाव्य की प्रस्तावना में किया है। संभवतः इसमें कवि ने अपने गुरु का जीवन-दिग्दर्शन कराते हुए निर्वाण का वर्णन किया होगा। 48-52 - 48. जैनधर्मदीपक स्वाध्याय, 49. जैन शासनदीपक स्वाध्याय, 50. आहारगवेषणा स्वाध्याय, 51. चौबीस जिनस्तवन, तथा 52. दशमत स्तवन आदि के भी उल्लेख प्राप्त होते हैं। 53. मगसी पार्श्वनाथ स्तवन - इस स्तवन की 5 गाथायें हैं। इसकी प्रति मेरे संग्रह में है। पं० बेचरदास जीवराज दोशी ने देवानन्दमहाकाव्य की प्रस्तावना पृ० 9 में लिखा है कि ग्रन्थकार का एक स्वहस्तलिखित पत्र भी विद्यमान है और वह पत्र ग्रन्थकार ने सं० 1756 भाद्र सुदि 2 को ग्वालियर से अपने शिष्य मुनि सुन्दरविजय, जो जिहानाबाद (दिल्ली) नगर में चातुर्मास थे उन पर लिखा हुआ है। यह पत्र गुर्जर भाषा में है। शोध करने पर कवि प्रणीत और भी अनेकों ग्रन्थ तथा विज्ञप्तिपत्र प्राप्त हो सकते हैं क्योंकि कवि प्रतिवर्ष चातुर्मास के मध्य में तत्कालीन गणनायक को प्रौढ़ एवं प्रांजल संस्कृत भाषा में कवित्व तथा लेख संग्रह 145