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________________ यह ग्रन्थ अनुवाद सहित महावीर ग्रन्थमाला, धूलिया से प्रकाशित है। अध्यात्म 31. अर्हद्गीता - भगवद्गीता के अनुकरण पर 36 अध्यायों में ग्रन्थकार ने इसकी रचना की है। भगवान् कृष्ण एवं अर्जुन की तरह इसमें गणधर गोतमस्वामी द्वारा प्रश्न और श्रमण भगवान् महावीर द्वारा उत्तर शैली में सरल शब्द रचना द्वारा जैन-दर्शन का सुन्दर दिग्दर्शन है। प्रत्येक अध्याय में 21 पद्य हैं। इसका दूसरा नाम तत्त्वगीता है। रचना संवत् का निर्देश नहीं है। यह ग्रन्थ महावीर ग्रन्थमाला, धूलिया से प्रकाशित है। ___32. मातृका प्रसाद - मातृका वर्ण 'ओम् नमः सिद्धम्' वर्णाम्नाय पर विवेचन करते हुए, 'ओम्' के रहस्य का विश्लेषण करते हुए अध्यात्मदर्शन का प्रतिपादन किया है। सं० 1747 धर्मनगर में इसकी रचना हुई है। यह प्रति कहाँ प्राप्त है? इस सम्बन्ध में पं० बेचरदासजी ने देवानन्दमहाकाव्य की प्रस्तावना में कोई उल्लेख नहीं किया है। 33. ब्रह्मबोध - यह ग्रन्थ अद्यावधि अप्राप्त है। अम्बालाल प्रेमचन्द शाह, पं० बेचरदास जीवराज दोशी, पं० भगवानदास जैन आदि ने इसको मेघविजयजी की आध्यात्मिक रचना मानी है, परन्तु किस आधार से? यह स्पष्ट नहीं है। संभव है अर्हद्गीता की पूर्व-पीठिका में ब्रह्म का निरूपण' होने से इसी आधार पर यह परम्परा चल पड़ी हो। ऐतिहासिक 34. तपगच्छपट्टावलीसूत्रवृत्यनुसन्धान - जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि मेघविजयजी ने पूर्व प्रणीत तपगच्छ पट्टावली जिसमें जगद्गुरुहीरविजयसूरि तक का वर्णन था, उसकी पूर्ति के रूप में * मेघविजयजी ने इसकी रचना की है। इसमें मूल चार पद्य प्राकृत भाषा में हैं और उसकी व्याख्या संस्कृत पद्य में है। आचार्य विजयसेनसूरि, विजयदेवसूरि, विजयसिंहसूरि और विजयप्रभसूरि का सं० 1932 से 1723 तक अनुक्रम से ऐतिहासिक गुरुपरम्परा का वर्णन है। यह दिग्विजय महाकाव्य के परिशिष्ट में प्रकाशित है। टीका-ग्रन्थ . 35. विजयदेवमहात्म्यविवरण - खरतरगच्छीय ज्ञानविमलोपाध्याय के शिष्य श्रीवल्लभोपाध्याय ने सं० 1687 के आसपास तपागच्छीय विजयदेवसूरि के यशोवर्णन रूप इस 1. इतोऽधिकं किञ्चन मातृकाय, व्याख्यानमादेशि मया वितत्य। श्रीतत्त्वगीताहितसत्प्रतीताऽध्यायेषु सद्ध्येयधियोत्तरेषु // (मातृकाप्रसाद) - (देवानन्दमहाकाव्य-प्रस्तावना, पृ०९ की टिप्पणी) 2. ओं नम: सिद्धमित्यादेवर्णाम्नायस्य वर्णनम्। चक्रे श्रीमेघविजयोपाध्याय धर्मसाधनम्॥ संवत्सरेऽश्ववार्थ्यश्वभूमिते पौप उज्ज्वले। श्रीधर्मनगरे ग्रन्थः पूर्णश्रियमशिश्रियत्॥ (मातृकाप्रसाद-प्रशस्ति) 3. दिग्विजय महाकाव्य-प्रस्तावना 4. देवानन्दमहाकाव्य-प्रस्तावना 5. मेघमहोदय-वर्प प्रबोध-प्रस्तावना 6. अर्हद्गीता पूर्वपीठिका पद्य 7-14 7. श्रीवल्लभोपाध्याय के परिचय के लिये देखें, अरजिनस्तव' की भूमिका लेख संग्रह 143
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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