________________ सबका तेजी होना या मंदी, अच्छी तरह जान सकते हैं। सारांश यही है कि भावी वर्ष का शुभाशुभ जानने के लिये कोई भी विषय इसमें नहीं छोड़ा है।' (भूमिका, पृ० 4) पं० भगवानदासजी जैन कृत हिन्दी अनुवाद के साथ यह ग्रन्थ प्रकाशित है। 25. जन्मपत्रीपद्धति - मुनि जिनविजयजी की सूचनानुसार इसकी एक प्रति मुनिकान्तिसागरजी के पास है। अनूपसंस्कृत-लायब्रेरी बीकानेर में भी 'मेघीपद्धति' की एक प्रति है पर उसमें कर्ता का नाम नहीं है। 26. हस्तसंजीवन - इसका दूसरा नाम सिद्धज्ञान भी हैं। मूल में 525 पद्य हैं। इस ग्रन्थ पर . स्वयं ग्रन्थकार ने 'सामुद्रिक लहरी' नामक 5000 श्लोक परिमाण विस्तृत टीका की रचना की है- . 1. दर्शनाधिकार, 2. स्पर्शनाधिकार, 3. रेखाविमर्शनाधिकार और 4. विशेषाधिकार। यह ग्रन्थ हस्तरेखा के सम्बन्ध में भारतीय सामुद्रिक शास्त्र का प्रामाणिक और महत्त्वूपर्ण ग्रन्थ है। टीका सहित यह ग्रन्थ मुनि मोहनलालजी जैन ग्रन्थमाला, इन्दौर से प्रकाशित है। रमल 27. रमलशास्त्र - यह ग्रन्थ अप्राप्त है। इसके संबंध में पं० अम्बालाल प्रेमचन्द शाह ने दिग्विजय-महाकाव्य की प्रस्तावना (पृ० 8) में लिखा है कि 'मेघमहोदयमाँ तेनो उल्लेख आवे छ / आ ग्रन्थ पण पोताना शिष्य मेरुविजय माटे लख्यो हतो' किन्तु मेघमहोदय का स्थल लेखक ने नहीं दिया है। जहाँ तक मेरा ख्याल है मेघमहोदय में इसका उल्लेख नहीं है। 28. उदयदीपिका - इसमें प्रश्न निकालने की पद्धति का विस्तृत वर्णन है। सं० 1752 में श्रावक मदनसिंह के लिये प्रश्नोत्तररूप में ग्रन्थकार ने इसकी रचना की हैं। यह ग्रन्थ अद्यावधि अप्रकाशित है। 29. प्रश्नसुन्दरी - इस ग्रन्थ में प्रश्न-विधि का संक्षेप पद्धति से वर्णन है। इसकी रचना भी श्रीविजयप्रभसूरि के शासनकाल में हुई है। यह ग्रन्थ अप्रकाशित है। दिग्विजय महाकाव्य की प्रस्तावना (पृ० 8) के अनुसार इसकी एक प्रति आचार्य क्षमाभद्रसूरि के पास है। 30. वीसा यंत्र कल्प - यन्त्र-शास्त्र इसे अर्जुनपताका और विजययन्त्र भी कहते हैं / इस ग्रन्थ की रचना विजयप्रभसूरि के साम्राज्य में हुई है। इस ग्रन्थ में 15 का यन्त्र, 16-17 का यन्त्र, 19 का यन्त्र, 20 का यन्त्र, पद्माकार वीसा यंत्र, अहँ एवं 20 विहरमान के आधार से 20 का यन्त्र, विजय यंत्र आदि की रचना विभिन्न रूप से किस प्रकार होती है, इसका विस्तार के साथ वर्णन किया है। अन्त में पद्मावती स्तोत्रान्तर्गत 'भूविश्व' पद्य की व्याख्या करते हुये पद्मावती वीसा यंत्र का विस्तार से आलेखन किया है। वीसा यंत्र का विचार करते हुये लिखा है कि बाहुबली आदि मुनिगण इस वीसा यंत्र को गतिभेद से स्वीकारते हैं / तो ये बाहुबली मुनि कौन हैं और इनका यन्त्र सम्बन्धी कौन-सा ग्रन्थ है? यह शोधकर्ताओं के लिये विचारणीय है। 1. नत्वार्हन्तं पार्श्वभास्वद्रूपं शंखेश्वरस्थितम्। श्रीश्राद्धमदनासिंहे धर्मलाभः प्रतन्यते॥१॥ (उदयदीपका मंगलाचरण) 2. अथ केचिदिदं यन्त्रं विशतेर्गतिभेदतः। प्राहुः श्रीबाहुबल्याद्या मुनयो नयकोविदा:॥ (पृ० भ४) 142 लेख संग्रह