________________ हुण्डिका' में देखना चाहिए। हानर्षिकृत हुण्डिका ग्रन्थ अप्राप्त है। यह ग्रन्थ अप्रकाशित है और इसकी . प्रतियाँ बीकानेर दानसागर भंडार, बड़ौदा एवं आगरा के भंडारों में प्राप्त हैं। ज्योतिष 24. मेघमहोदय-वर्षप्रबोध - इस ग्रन्थ में रचना संवत् का निर्देश नहीं है किन्तु प्रशस्ति में गच्छनायक विजयप्रभसूरि और आचार्य विजयरत्नसूरि' का उल्लेख होने से यह निश्चित है कि इसकी रचना सं० 1732 के पश्चात् ही हुई है क्योंकि विजयरत्नसूरि को आचार्यपद सं० 1732 में प्राप्त हुआ था। ग्रन्थकार ने इस ग्रन्थ का सम्बन्ध और विषय स्थानांगसूत्र (जैनागम) से बतलाया है। प्राचीन एवं अर्वाचीन ग्रन्थ तथा भड्डली आदि लोकप्रचलित अनेक ग्रन्थों के आधार से इनकी रचना हुई है। उद्धृत ग्रन्थों में मुख्य-मुख्य ग्रन्थ निम्न हैं: 1. अर्घकाण्ड, 2. गार्गीय संहिता, 3. गिरधरानन्द, 4. चतुर्मासकुलक, 5. जगन्मोहन, 6. जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र, 7. तिथिकुलक, 8. त्रैलोक्यदीपक, 9. नरपतिजयचर्या, 10. बालबोध ज्योतिष, 11. भडुली, 12. भद्रबाहुसंहिता, 13. भगवतीसूत्र, 14. रुद्रकृत मेघमाला, 15. हीरविजयसूरि कृत मेघमाला, 16. केवलीकीर्ति' (दिगम्बर) कृत मेघमाला, 17. खरतरगच्छीय उपाध्याय मेघजी कृत मेघमाला, 18. रत्नमाला, 19. रामविनोद, 20. वराहसंहिता, 21. विवेकविलास, 22. सारसंग्रह, 23. स्थानांगसूत्र, 24. दुर्गदेव कृत षष्टिसंवत्सर आदि। ___ आश्चर्य है कि हीरविजयसूरि, खरतरगच्छीय मेघजी और केवलकीर्तिप्रणीत मेघमाला नामक तीनों ग्रन्थ आज अप्राप्त हैं। . यह ग्रन्थ 13 अधिकार और 21 द्वारों में विभक्त है। देश, वात, देव, संवत्सर, शनिश्चर वत्सर, अयन, मास-पक्ष-दिनं निरूपण, अगस्ति वर्षराजादि जन्मलग्न अभ्रविधुदादि कथन, गर्भकथन, तिथिफलकथन, सूर्याचार कथन, ग्रहणविमर्श द्वारचतुष्टय कथन और शकुन निरूपण नामक 13 अधिकार हैं। इस ग्रन्थ की महत्ता के सम्बन्ध में पं० भगवानदासजी जैन लिखते हैं: 'इसका प्रतिदिन अनुशीलन किया जाए तो अगले वर्ष में दुष्काल होगा या सुकाल, वर्षा कब और कितने-किने दिन बरसेगी; धान्य, सोना, चांदी आदि धातु, कपास, सूत और क्रयाणक वस्तु इन 1. शेपं श्रीहीरविजयसूरीश्वरवचः प्रबुद्ध श्रीलुम्पाद्यपाक्षिकश्रीमेघजीनामाचार्यसहचारवश श्रीतपागच्छसामाचार्यंगी कारकसैद्धान्तिकमुख्यश्रीहानर्पिकृतहुण्डिकातः प्रतिपत्तव्यम्। 2. श्रीमत्तपागणविभुः प्रसरत्प्रभावः, प्रद्योतते विजयतः प्रभनामसूरिः। तत्पट्टपद्यतरणिर्विजयादिरत्नः, स्वामी गणस्य महसा विजितधुरत्नः॥ 99 // 3. स्थांनागसूत्रविषयीकृतवर्षबोध-ज्ञानाय यत्प्रकरणं विहितं वितत्य। भक्त्या व्यदीपि जिनदर्शनमेव तेन, लोकः सुखी भवतु शाश्वतबोधलक्ष्म्या // 98 // 4. क्वचित्प्राच्यैर्वाच्यैरतिशयरसात् श्लोककथनैः, क्वचिन्नव्यैः श्रव्यैः प्रकरणमभूदेतदखिलम्। सतां प्रामाण्याय क्वचिदुचितलोकोक्तिरुचितं, जिनश्रद्धाभाजामपि चतुरराजां समुचितम् // 101 // 5. देखें पृ० 262, 347 // 6. देखें, पृ० 263, 312 // 7. देखें, पृ० 108 8. त्रयोदशोऽधिकारो भूच्छास्त्रेऽस्मिन् शकुनाश्रयः। . तदेकविंशतिद्वरिर्ग्रन्थो लभत पूर्णताम् // 97 // लेख संग्रह 141