________________ ज्ञान भण्डार की स्थापना का समय जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है जिनभद्रसूरि ने अपने 40 वर्ष के आचार्य काल में अर्थात् 1475 से 1514 के मध्य में 8 स्थानों पर - जालौर, नागौर, पाटण, खंभात, आशापल्ली (अहमदाबाद), मांडवगढ़, देवगिरि, जैसलमेर में ज्ञान भंडारों की स्थापना की थी, जिनमें से जालौर, नागौर, आशापल्ली, देवगिरि के भंडारों का तो अता-पता ही नहीं है। माँडवगढ़ के भंडार का भी कोई पता नहीं चलता, किन्तु पाटण के सागरगच्छ के उपाश्रय में सुरक्षित भगवतीसूत्र की निम्न प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि वि. सं. 1503 में मंत्री मंडन और सं. धनराज ने जिनभद्रसूरि के उपदेश से समस्त सिद्धान्त-ग्रन्थ लिखवाये थे - "सं. 1503 वैशाख सुदि प्रतिपत्तिथौ रविदिने अद्येह श्री स्तम्भतीर्थे श्री खरतरगच्छे श्री जिनराजसूरि पटे श्री जिनभद्रसरीश्वराणामपदेशेन श्रीश्रीमालजातीय सं.मांडण सं.धनराज भगवतीसत्र पस्तकं निजपण्यार्थं लिखापितं। x x x श्रीमालज्ञातिमण्डनेन संघेश्वर - श्रीमण्डनेन सं. श्री धनराज सं. खीमराज़ सं. उदयराज सं. मण्डनपुत्र पूजा सं. जीजी सं. संग्राम सं. श्रीमाल प्रमुखपरिवृतेन सकलसिद्धान्तपुस्तकानि लेखयांचक्राणानि। श्रीः।" इससे स्पष्ट है कि मांडवगढ़ के भंडार की स्थापना वि. सं. 1503 के आसपास हुई होगी। 'कैटलॉग ऑफ संस्कृत एण्ड प्राकृत मैन्युस्क्रिप्ट्स जैसलमेर कलेक्सन' के अनुसार जिनभद्रसूरि ज्ञान भंडार, जैसलमेर में जिनभद्रसूरि के उपदेश से खंभात निवासी पारीख गोत्रीय श्रेष्ठि धरणा शाह एवं श्रीमालवंशीय बलिराज उदयराज द्वारा ताड़पत्र पर लिखापित 48 ग्रन्थ आज भी विद्यमान हैं। इन ग्रन्थों की प्रतिलिपि का समय सं. 1485 से 1491 तक का है। इनमें से अधिकांशतः लेखन पुष्पिकाओं में 'अद्येह स्तम्भतीर्थे' या 'स्तम्भतीर्थे' का उल्लेख है। साथ ही इन पुष्पिकाओं में 'सिद्धान्तकोशे' या 'जिनभद्रसूरि भाण्डागरे' का उल्लेख प्राप्त है। अतः स्पष्ट है कि 1485 या 86 के आसपास ही खंभात में जिनभद्रसूरि भंडार की स्थापना हुई थी। आज इस भंडार का खंभात में कहीं पता नहीं है। इन्हीं भक्तद्वय - श्रेष्ठि धरणा शाह और बलिराज उदयराज ने अणहिलपुर पत्तन में जिनभद्रसूरि भाण्डागार की स्थापना सं. 1487-88 में की थी। जैसलमेर भण्डारस्थ कागज पर लिखित दश से अधिक प्रतियें विद्यमान हैं जो 1487 से 1489 के मध्य लिखी हुई हैं, इनकी लेखन पुष्पिकाओं में 'श्रीपत्तने' या 'पत्तनमध्ये' श्री जिनभद्रसूरीणां भाण्डागारे अंकित है। वाडी पार्श्वनाथ मंदिर, पाटण के ज्ञान भंडार में आज भी इन्हीं के उपदेश से लिखापित पचासों ग्रन्थ विद्यमान हैं। जिनभद्रसूरि ज्ञान भंडार, जैसलमेर की स्थापना कब हुई, निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता, किन्तु अनुमान है कि इसकी स्थापना वि. सं. 1497 में या इसके आसपास ही हुई होगी, क्योंकि आचार्य जिनभद्र ने 300 प्रतिमाओं के साथ संभवनाथ मंदिर की वि. सं. 1497 में प्रतिष्ठा करवाई थी। इसी संभवनाथ मंदिर के उद्देश्य को ध्यान में रखकर ही मंदिर निर्माण के समय पहले तलगृह का निर्माण करवाया गया होगा और प्रतिष्ठा के समय या उसी वर्ष शुभ मुहूर्त में भंडार की स्थापना की गई होगी। इसी वर्ष 1497, माघ सुदी को 5 जिनभद्रसूरि के उपदेश से जैसलमेर में लिखापित 'कल्पसूत्र संदेहविषौषधि वृत्ति' की प्रति क्रमांक 426 पर प्राप्त है और दूसरी कागज की प्रति 1499 की लिखित क्रमांक 74 पर विद्यमान है। अतः इस भंडार की स्थापना का समय 1497 मान सकते हैं। भंडार की स्थापना के पश्चात् उनके शिष्य परिवार और परवर्ती खरतरगच्छीय आचार्यादि इसे सर्वदा समृद्ध करते रहे। लेख संग्रह