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________________ ज्ञान भण्डार की महत्ता ____ ताड़पत्रीय ग्रन्थों की प्रचुरता एवं प्राचीनता की दृष्टि से उत्तरी भारत के तीन स्थल महत्त्वपूर्ण माने गये हैं - जैसलमेर, पाटण और खंभात। पाटण और खंभात के ज्ञान भंडार विशाल एवं समृद्धिपूर्ण हैं तदपि जैसलमेर का ज्ञान भंडार अपनी कई विशेषताओं के कारण विशिष्ट महत्वपूर्ण स्थान रखता है। ताड़पत्र एवं कागज की प्राचीनतम प्रतियों, जैनागम एवं साहित्य की तथा बौद्ध और भारतीय साहित्य की विविध विषयक प्राचीनतम, दुर्लभ एवं अन्यत्र अप्राप्त ग्रन्थों, प्राचीनतम चित्रित काष्ठपट्टिकाओं का विशाल संग्रह इस भंडार की प्रमुख विशेषता है। इसी कारण यह ज्ञान भंडार विश्व प्रसिद्ध है। इसका अवलोकन ग्रन्थों का संशोधन-सम्पादन एवं प्रतिलिपि करने हेतु देश के अनेक विद्वान एवं शोधक ही नहीं, अपितु अनेक पाश्चात्य विद्वानों ने भी यहाँ आकर लाभ उठाया। श्री लालचन्द्र भगवान् गान्धी लिखित श्री सी.डी. दलाल द्वारा सम्पादित 'जैसलमेर जैन भाण्डागारीय ग्रन्थानां सूचिपत्रम्' प्रकाशित होने के पश्चात् तो शोध-विद्वानों और आचार्यादि मुनिवर्ग का तो यह प्रमुख आकर्षण केन्द्र ही बन गया। फलस्वरूप प्रचुर मात्रा में विद्वान और जैनाचार्य एवं मुनिगण यहाँ आये। कइयों ने सैकड़ों ग्रन्थों की प्रतिलिपियाँ करवाकर अपने-अपने ज्ञान भंडारों को समृद्ध किया। कइयों ने सम्पादन कर कई ग्रन्थ प्रकाशित करवाये। कइयों ने यहां की प्राचीनतम ग्रन्थों के आधार पर ग्रन्थों का संशोधन किया। कई आचार्य और मुनि पद धारियों ने श्रावकों की श्रद्धा का दुरुपयोग करते हुए अनेक प्राचीन ग्रन्थों एवं चित्रित काष्ठपट्टिकाओं को इधर-उधर भी किया, जो आज जोधपुर, बीकानेर, पालीताणा, अहमदाबाद आदि अन्य संग्रहालयों की शोभा बढ़ा रहे हैं। आगम प्रभाकर मुनिराज श्री पुण्यविजय जी ने वि. सं. 2007 में जैसलमेर में स्थिरता कर, निष्ठापूर्वक अस्त-व्यस्त संग्रह को सम्यक् प्रकार से व्यवस्थित कर समुद्धार किया। शताधिक ग्रन्थों का जीर्णोद्धार करवाया। 214 ग्रन्थों की माइक्रो फिल्म भी करवाई। इनमें से कुछ ग्रन्थों की फोटो स्टेट कॉपियाँ लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्या मंदिर, अहमदाबाद और राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर में सुरक्षित है। ___ अध्रना सेवा मंदिर, रावटी, जोधपुर के संचालक श्री जोहरीमलजी पारख ने भंडारस्थ समस्त ताड़पत्रीय ग्रन्थों की फोटो कॉपियाँ करवा ली हैं। भण्डार के ट्रस्टियों ने समस्त चित्रित सामग्री का एलबम भी बना लिया है। मुनि पुण्यविजयजी ने संकलन कर 'जैसलमेरु दुर्गस्थ हस्तप्रतिसंग्रहगतानां संस्कृत-प्राकृत भाषानिबद्धानां ग्रन्थानां नूतना सूची' नाम से सूची पत्र भी सन् 1972 में प्रकाशित करवाया। प्राचीन एवं दुर्लभ ग्रन्थ इस संग्रह में लम्बी और छोटे नाप की ताड़पत्र पर लिखित कुल 403 प्रतियाँ हैं, जबकि कृतियों की दृष्टि से इसमें 750 से अधिक हैं। खरतरगच्छ की बेगड़ शाखा के आचार्यों द्वारा स्थापित बेगड़गच्छ का ज्ञान भण्डार भी इसमें सम्मिलित है। इस संग्रह में जिनभद्रसूरि द्वारा कागज पर पाटण ज्ञान भंडार के लिये लिखवाई गई अनेक प्रतियाँ सुरक्षित हैं। यह संग्रह कागज पर लिखित ग्रन्थों का ही है। इसमें कुल 1330 प्रतियाँ हैं। जिनभद्रीय संग्रह में क्रमांक 116 पर अवस्थित प्राचीनतम प्रति 'विशेषावश्यक महाभाष्य' की है, जिसका लेखन काल १०वीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध है। और, कागज पर लिखित प्राचीन से प्राचीन प्रति लेख संग्रह
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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