________________ जयति जगति सीमा यस्य रामस्य नीतेः, सततविजयि राज्यं लब्धवर्णेन वर्ण्यम् / पुरमिदमिदमीयाख्याविशेषात्प्रतीतं गुणगणगणनायां तस्य कः शीतक: स्यात् // 1 // मनसि परिनिधाय स्वीयविज्ञप्तिमेतां रचयति शुचिवृत्या मेघनामा भुजिष्यः॥ 16 // तैस्तातपादैः प्रसरत्प्रसादैर्यशोभिराक्षिप्तहिमांशुपादैः। नत्यस्त्रिसायं शिशुना क्रियन्ते, सा मानसाध्यक्ष..... // 36 // 16. विज्ञप्तिपत्रम् - यह पत्र भी मेघविजयजी ने उज्जैन से मेदिनीपुर (मेड़ता) में स्थित आचार्यश्री को लिखा है। यह पत्र अपूर्ण है, पद्य सं० 31, 32, 4 कुल 67 है। हरिणी और वसन्ततिलका छन्द में गुम्फित है। इसकी एक मात्र प्रति रा० प्रा० वि० प्र० शाखा कार्यालय, बीकानेर, खजांची सं० 'श' 284 पर है जिसकी पत्र सं० 4-6 है और लेखन १८वीं शती है, आद्यन्त इस प्रकार है: जयति नगरे यस्मिन्नर्हनिकेतनं..... द्विविधतनुभृत्तापव्यापव्यपोहसचेतनम्। अनुगुणगुणैमोदोधानात् कृतामृतवेतनं, समहिमहिमच्छायामायाप्रमोदितकेतनम्॥ 1 // यस्यामनेकसविवेकमहेभ्यलोकनिर्मापितार्हत महाभवनानि नूनम्। उच्चैः प्रसृत्वरसुधाकरशंकरण, व्याधामधारि वरधाम हसन्ति कामम् // 2 // शिष्यों भुजिष्य रुचिनम्रतनुर्विशिष्य नाम्नाऽथ मेघविजयः किल तं तनोति। विज्ञप्तिवल्लिवनपल्लवनं रसेन लेखात् वियोजनविपल्लवनं विधाय॥ 4 // 17. विज्ञप्तिपत्रम् - पत्र अपूर्ण होने से यह अस्पष्ट है कि कवि ने यह पत्र कहाँ से कहाँ को और किसको लिखा है? 'तपगणभृतः पंचशाखस्य पाणे:' से अनुमान कर सकते हैं कि विजयसिंहसूरि को यह पत्र लिखा हो। पद्य 25 और 21 है। इसमें पर्युषणा के धार्मिक कृत्यों के समाचार हैं। इसकी भी एकमात्र प्रति रा० प्रा० वि० प्र० शाखा कार्यालय, बीकानेर, खजांची संग्रह 'श' 284 पर है। पत्र संख्या 79 है। आद्यन्त निम्न है: अथ गगनरमायाचित्रमायानुकारी, निजकरनिकरेण ध्वान्तधारापहारी। समयरसिकयोगी स्वान्तपद्मप्रचारी धृततनुरिव बोधः सूर्य आसीत्प्रकाशी॥ 1 // श्रीमान् सूरेर्जयति विजयी लक्षणैः पञ्चशाख-श्चञ्चललक्ष्मीभरवितरणैर्नन्दितः श्राद्धशाखः। सेव्यः शश्वविबुधनिवहैरंगवान्पारिजातः, प्रात स्वानिव हृततमस्तेजसाऽपारिजातः॥२॥ वासोल्लासप्रकटकपटादुगिरन् पोष्यरागं, लक्ष्मीलीलाभवनविभया सूरिराजस्य पाणिः। अम्भोयोनेरपि च लभतां सौरभेणोपमानं, श्यामाभासा यदिह रमते भृगमालाक्षमाला॥२॥ लेख संग्रह 138