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________________ सेवाप्रोलैर्मनसि हसितः कर्मणा नर्मवादं, कृत्वा तत्त्वाश्रयणविधये प्रेषयत्येष मेघः॥ 28 // पश्चाद् गुरोर्दृष्टिसुधाप्रवाहैराप्लाव्यमानं दलमेव देयम्। स्मार्यश्च कार्येषु जिनार्यनामे (?), भुजिष्यमुख्योऽस्त्विति मंगल श्रीः॥ 125 // 13. गुरुविज्ञप्तिलेखरूपं चित्रकोशकाव्यं - मेघविजयजी ने सादड़ी से यह लेख श्रीपुरस्थित तत्कालीन गणनायक श्री विजयप्रभसूरि को लिखा है। इसमें तीन अधिकार हैं। प्रथम अधिकार प्राप्त नहीं है और तृतीय अधिकार भी अपूर्ण रूप में प्राप्त है। यह लेख चित्रबन्ध काव्यों में लिखा गया है। सिंहासन, श्रीवत्स, मत्स्ययुगल, स्वस्तिक, बीजपूरक नन्दावर्त्त, भद्रासन, शरावसम्पुट, दर्पण, गोमूत्रिका कमल, अष्टारचक्र, नागसंगत, मालती, सूर्यमुखी पुष्प, चतुर्दलदेवकुसुम आदि चित्र एवं प्रश्नोत्तरजाति श्लिष्ट काव्यों से यह लेख गुम्फित है। द्वितीय अधिकार में 47 पद्य हैं और तृतीयाधिकार के 9 पद्य प्राप्त हैं। इसकी एकमात्र प्रति श्रीअगरचन्द्रजी नाहटा, बीकानेर के संग्रह में है। इसका आद्यन्त इस प्रकार है: आदि- यत्र चित्रभरचिंत्रिचैत्य-श्रेणिरुन्नततरा मनुजानाम्। . नृत्यगुञ्जदुरुम मृदंगनिस्वनैर्घनमिहाह्वयतीव // अन्त- शिवाजो लब्धरजोगवासि, शुभाशयः शस्तशयः समासु। .. बभार शान्तः श्रुतसारभावं, सदानमासन्नसमा न दासः॥९॥ १४.विज्ञप्तिपत्रम् - मेघविजयजी ने नाडुलाई से यह पत्र वर्गवटी (बगड़ी) नगर में विराजमान गणाधिप श्री विजयप्रभसूरि को लिखा है। पद्य संख्या 101 है। प्रारंभ में पद्य 1 से 22 तक युगादिनाथ का वर्णन, पद्य 23-47 तक बंगड़ी का वर्णन, पद्य 48 से 79 तक नाडुलाई का चातुर्मासिक धार्मिक कृत्यों का समाचार है और अन्त में 1 से 22 तक गच्छाधिप विजयप्रभसूरि का वर्णन है। इसकी एकमात्र प्रति . राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर में ग्रं० नं० 20,415 है। इसका आद्यन्त इस प्रकार है: स्वस्तिश्रियामाश्रयणीयमूर्त्तिः सुरद्रुवन्निर्मितकामपूर्तिः। स्फूर्तिर्यदीया महसस्त्रिलोक्यां सर्वाऽपि निर्वापितशत्रुकीर्तिः॥ 2 // xx x तत्राभिरामप्रभुपादरेणोः, पावित्र्यत पञ्चवटीकृतायाम्। स्फुटीभवेद् देवनटीस्तुतायां, पुर्यां परं वर्गवटीतिनाम्न्याम् // 47 // करोति विज्ञप्तिमिमा ममायं, मेघादिशब्दाद् विजयस्त्रिसायम् // 58 // येषामिदं विजयते वरपाणिपद्म-माहात्म्यमीहितसमृद्धिकरं जनानाम्। तैर्विश्वपूज्यचरणैवधारणीया, स्वीयानुप्रणमनप्रकृतिस्त्रिसायम् // 101 // 15. विज्ञप्तिपत्रम् - मेघविजयजी ने यह पत्र उदयपुर से रामपुर में विराजमान श्रीविजयप्रभसूरि को लिखा है। पद्यसंख्या 16, 38 और 36 अर्थात् 90 पद्य हैं। इसमें रामपुर का वर्णन, उदयपुर का वर्णन, समाचार एवं आचार्य विजयप्रभ के कीर्त्ति-सौरभ का वर्णन है। अंतिम अंश अपूर्ण है। इसकी मात्र प्रति रा० प्रा० शाखा कार्यालय, बीकानेर, मोतीचंद खजांची संग्रह 'श' 284 पर है जिसकी पत्रसंख्या 4-6 है और लेखन १८वीं शती है। इसका आद्यन्त इस प्रकार है: लेख संग्रह 137
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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