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________________ किये हैं। यह काव्य जैन आत्मानन्द सभा भावनगर से स्वतन्त्र पुस्तिका रूप में और विज्ञप्तिलेखसंग्रह प्रथम भाग में सिंघी जैन ग्रन्थमाला से प्रकाशित है। ___7. लघुत्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र - कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र रचित त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित्र का यह संक्षिप्त संस्करण है। कोठारी वनराज की अभ्यर्थना से कवि ने लगभग पाँच हजार पद्यों में इसकी रचना की है। हेमचन्द्र की तरह ही इसके 10 पर्यों को पूर्वार्द्ध और उत्तरार्द्ध में विभाजित किया है। इसमें कवि ने रचना-समय नहीं दिया है। यह ग्रन्थ अद्यावधि अप्रकाशित है किन्तु इसका भावानुवाद गुर्जरभाषा में पं० मफतलाल झवेरचन्द ने किया है जो छोटालाल मोहनलाल शाह उनाबा (गुजरात) की तरफ से प्रकाशित है। कथा साहित्य 8. भविष्यदत्त चरित्र - ज्ञान (श्रुत) पंचमी माहात्म्य पर इस चरित्र की पद्यमय 21 अधिकारों में रचना हुई है। कवि ने रचना-समय का उल्लेख नहीं किया है किन्तु विजयरत्नसूरि का उल्लेख होने से यह स्पष्ट है कि यह रचना वि० सं० 1732 के पश्चात् की है क्योंकि विजयरत्नसूरि 17324 में आचार्य बने . थे। यह चरित्र दानदयामृतहिम्मत ग्रन्थमाला, अहमदाबाद से प्रकाशित हो चुका है। 9. पंचाख्यान - सं० 1716 में नवरंगपुर में इसकी रचना हुई है। कवि के कथानानुसार पूर्व में 4600 श्लोक' परिमाण का जो ‘पंचाख्यान' नामक ग्रन्थ था उसी का यह संक्षिप्त संस्करण है। संभवतः यह पंचाख्यान पूर्णभद्र रचित पंचाख्यान ही हो। इसकी भाषा सरल और प्रसादगुण युक्त है। यह ग्रन्थ अद्यावधि अप्रकाशित है। इसकी एक प्रति सं० 1751 की लिखित अनूपसंस्कृत लायब्रेरी, बीकानेर में प्राप्त है। विज्ञप्ति पत्रकाव्य पत्र-प्रेषकस्वीय आचार्य या गुरु को आलंकारिक भाषा में गद्य, पद्य या गद्यपद्यमिश्र में जो विज्ञप्ति रूप पत्र लिखता है वह विज्ञप्ति-पत्र कहलाता है। जिस स्थान पर आचार्य विराजमान हों उस नगरी का, तत्रस्थ मन्दिरों का और आचार्य का प्रभावशाली आलंकारिक वर्णन तथा स्वीय प्रवास, तीर्थयात्रा, 1. माघकाव्यं देवगुरोर्मेघदूतं प्रभप्रभोः। समस्यार्थं समस्याएं निर्ममे मेघपण्डितः॥१३॥ 2. श्रीमेघविजयनामा विनयविलासे लघुत्रिपष्टीयम्। चक्रे कोष्ठागारिक-वनराजाऽभ्यर्थनायोगात् // 599 // लघुत्रिपष्टिशलाकापुरुषचरित्र प्रान्तप्रशस्ति, 3. तपागणाम्भोजसहस्रभानःसरिर्जयी श्रीविजयप्रभावः। तत्पट्टदीपः श्रमणावनीपः प्रभासते श्रीविजयादिरत्नः॥७६ // - भविष्यदत्तचरित्र प्रान्तप्रशस्ति 4. विजयप्रभसूरिवराणां पट्टे 63 विजयरत्नसूरिः तेषां पिता हीरानन्द माता च हीरादे, पालनपुरे 1710 वर्षे जन्म, 1722 वर्षे दीक्षा, 1732 वर्षे नागोरपुरे सूरिपदं, सर्वायु:६३ वर्षाणिप्रपाल्य सं० 1773 भाद्रकृष्ण द्वितीयायां उदयपुरे स्वर्गं गतः। ___-भविष्यदत्तचरित्र प्रस्तावना, पृ० 4: 5. तच्छिशुर्मेघविजयो रसेन्दुनगभूमिते / वर्षे व्यधादिमं ग्रन्थं नवरंगपुरे वरे॥६ 4. चतु:सहस्री शतपट्कयुक्ता श्रीनीतिशास्त्रप्रथितं पुराऽभूत् / संक्षिप्य तत्त्वालसुखावबुध्यै, व्यधत्त मेघादविजयो मनीपी॥३॥ (पंचाख्यानप्रशस्ति) 134 लेख संग्रह
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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