________________ गज के सम्मुख केसरी, चाणूर के सम्मुख गोविन्द, कर्ण के सम्मुख धनञ्जय, रावण के सम्मुख लक्ष्मण, वादी के सम्मुख प्रतिवादी और समराङ्गण के सम्मुख महारथी में हर्षित होकर इस अविद शब्द के 108 . अर्थ (शतार्थी की रचना) करता हूँ। (टी. मं. पद्य 4-8) इसकी रचना तो दिल्ली में हुई है पर मंगलाचरण की टीका करते हुए लेखक "प्रथम श्रीमद्रावणपार्श्वनाथचरणारविन्दं प्रणम्य" कहकर एक ऐतिहासिक घटना की ओर ध्यान खींच रहा है। इस लेखक ने ही नहीं, किन्तु पूर्ववर्ती कई लेखकों ने रावण पार्श्वनाथ का उल्लेख अपने ग्रन्थों में किया है, परन्तु वह रावण पार्श्वनाथ कहाँ था? कुछ कहा नहीं जा सकता था। कुछ वर्ष पूर्व ही अलवर में खण्डहर के रूप में इसके अवशेष और शिलालेखादि प्राप्त हो गए, उससे स्पष्ट है कि लेखक इस प्रदेश में ही विशेष भ्रमण करता था। शतार्थी की रचना प्रौढ़ एवं परिमार्जित हुई है, इस लघुकायिक 36 पद्यों में 118 अर्थ करना, लेखक की प्रतिभा और उक्ति लाघवता को प्रकट करता है। यहाँ पर एक-दो उदाहरण देना अनुचित न होगा - के विज्ञाः के सतां निन्द्याः काहूतर्विदुषां मता। नौमि कान् कांश्च तत्याज, किं शठामन्त्रणं स्मृतम्॥९॥ व्याख्या - हे अ! विदो-विष्णुज्ञाः सम्बोधनान्तं बहुत्वं, / 13 / अविदः- विष्णुज्ञान्, / 14 / अविदो मूर्खान्, / 15 / शठानां-मूर्खाणां आमन्त्रणं सम्बोधनं किम्? तत्रोत्तरम् हे अविदः- हे शठाः! इति सम्बोधनबहुतत्वम्। 16 // 8 // भ्वादिषु प्रत्ययः कः स्यात्, कीदृशः कामिनीगणः। को धातुपालने लक्ष्यामन्त्रणं किं बुधैः स्मृतम्॥१०॥, व्याख्या - अप् प्रत्ययः / अप् कर्तरि धातोरप् प्रत्ययो भवति इति श्रीमत् परमहंसपरिव्राजकाचार्यश्रीमदनुभूतिस्वरूपाचार्य विरचित सारस्वतमतम्। 21 / इ:-कामस्तं ददातीति इदः- कामप्रदः। यत् सुरूपां प्रमदामवलोक्य सर्वोऽपि जनः सकामो भवतीति नयः। यदुक्तम् हरिरपि राधावशगो जातो रुद्रोऽपि पार्वतीवशगः। ' का वामेतरपुंसां स्त्रीवशगो भवति सर्वसंसार॥ 'अकारो वासुदेवः स्यात् इकारः काम उच्यते।' इत्येकाक्षर कोषः। 22 / अवरक्षणे। 23 / बुधैः पण्डितैः लक्ष्म्याः आमन्त्रणं-सम्बोधनं किं स्मृतं कथतम्? उत्तरम्-हे ई! लक्ष्मि इति सम्बोधनं भवेत् / 24 // 10 // ___ इस विवेचन से भली भांति प्रकट हो जाता है कि आप व्याकरण शास्त्र के प्रौढ़ विद्वान् थे अन्यथा अविद जैसे अप्रसिद्ध शब्द पर शतार्थी की रचना नहीं हो सकती थी। केवल आपकी यही कृति हो, ऐसी बात नहीं, अभी तक आपकी निम्नलिखित कृतियाँ प्राप्त हो चुकी हैं: 1. सोमचन्द्र राजा चौपाई (सं. 1617 श्रा० सु० 15 जौनपुर) 2. चित्रसेन पदमावती रास 3. भक्तामर वृत्ति 126 लेख संग्रह