SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 4. कल्याण मन्दिर वृत्ति 5. विदग्ध मुखमण्डन टीका (1669 मि० सु० 3, रविवार, सेजपुर) 6. प्रश्नप्रबोध किन्तु इस कृति की प्रशस्ति से और भी कई नूतन ग्रन्थों का पता लगता है:१. प्रश्नप्रबोधटीका 2. राघवपाण्डवीय टीका 3. राक्षस काव्य टीका 4. पार्श्वस्तव टीका 5. नलवर्णन महाकाव्य 6. आदित्यावतार स्तवन पर दुर्भाय है कि इसमें से एक भी कृति वर्तमान में उपलब्ध नहीं है / 350 वर्ष के अल्पकाल में ही आपकी संपूर्ण कृतियों का नाश हो जाना आश्चर्य प्रकट करता है। अथवा पाली का श्रीपूज्य जी का संग्रह आद्यपक्षीय शाखा का प्रमुख भंडार है। उस भंडार में कुछ कृतियाँ हों तो कह नहीं सकते। पर उस भंडार का आज तक किसी भी विद्वान् ने अवलोकन नहीं किया। यह प्रति यहाँ (कोटा) के सरस्वती भण्डार (गढ़) में सुरक्षित है। इसके 7 पत्र हैं और इसका लेखन संवत् 1823 द्वि० चै० कृ० 15, बुधवार है। [श्रमण, वाराणसी, वर्ष-५, अंक-६] 000 5. प्रेसकॉपी मेरे संग्रह में है। 6. इसकी स्वयं लिखित एकमात्र प्रति मुनिराज श्री पुण्यविजय श्री म० के संग्रह में है। 7. इसका उल्लेख विदग्धमुखमण्डन की टीका, चतुर्थ परिच्छेद के १३वें श्लोक की टीका में भी है:यद्वयमपि प्रश्रप्रबोधालङ्कारे ब्रूमः कञ्चियुवानमुत्प्रेक्ष्य काचित् कन्दर्पविह्वला। चकार कज्जलं लात्वा शृङ्गारं नैत्रयोर्वरम्॥ अस्यार्थश्चैव टीकायां स्वोपज्ञाभिधानायां द्रष्टव्यः। लेख संग्रह 127
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy