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________________ इसमें प्रथम चरण में 'वरेन्द्र-वरेन्द्र', द्वितीय चरण में 'सुखानि सुखानि', तीसरे चरण में 'जनस्य जनस्य' और चौथे चरण में 'तलोक तलोक' की छटा दर्शनीय है। यही क्रम 13 श्लोकों में प्राप्त है। 2. तिमिरीपुरीश्वरश्रीपार्श्वनाथस्तोत्र - यह समस्या-गर्भित स्तोत्र है। कवि ने तिमिरीपुर स्थान का उल्लेख किया है। यह तिमिरीपुर आज तिंवरी के नाम से प्रसिद्ध है जो जोधपुर से लगभग 25 किलोमीटर दूर है। यह समस्या--प्रधान होते हुए भी महाकवि तुलसीदास के जाकी कृपा पंगु गिरि लंघे के अनुकरण पर कवि की भावाभिव्यक्ति है। प्रभु के प्रात:काल दर्शन करने पर निर्धन भी धनवान हो जाता है, मूक भी वाचाल हो जाता है, बधिर भी सुनने लगता है, पंगु भी नृत्य करने लगता है और कुरूप भी सौन्दर्यवान् हो जाता है। 12 श्लोक हैं / इसमें कवि ने वसंततिलका आदि 7 छन्दों का प्रयोग किया है। - अब दोनों स्तोत्रों का मूल पाठ प्रस्तुत है - श्रीपार्श्वनाथस्तोत्रम् (सुन्दरीच्छन्दः) // 0 // ॐनमः॥ जिनवरेन्द्रवरेन्द्रकृतस्तुते, कुरु सुखानि सुखानिरनेनसः॥ 'भविजनस्य जनस्यदशर्मदः, प्रणतलोकतलोकभयापहः॥ 1 // अविकलं विकलङ्कमुनिः शिवं, विगतमो गतमोहभरः क्रियात् / विनयवन्ननयवन्नृभिरर्चितः प्रमददो मददोषमलोज्झितः॥ 2 // मुनिजने निजनेमियुजा मुदं, वितरतातरता च भवाम्बुधिम्। अविरतं विरतं स ददातु शं, शिवरमावरमापि हि येन वै॥ 3 // 'कलिकुमार्गकुमार्गमहामृग-द्विपरिपोऽपरिपो परमं पदम् / विवरमे वरमे चरणाम्बुजे, रतिमतोऽममतो महितस्तव // 4 // सुर गुरूपमरूपमनोहरै :, प्रवर धीभिरधीभिर संयुतै : / अभिनुतो भवतो भवतोऽवता-जिनवरोमररोमरकापहृत् // 5 // असुमतः सुमतः शुभतीर्थपः सुमहसोऽमहसोज्झितमाधुपः। विदितजातिरऽजातिरतिः श्रियं, वितनुतात्तनुतामलदीधितिः॥६॥ सकलमुत्कलमुत्पललोचनं, नमत तं मततन्त्रमगः प्रदम् / मुनिजना निजनायकमादरा-दसितरुक्सितरुक्करुणापरम् // 7 // सुकविराजिविराजितपर्षदा-श्रितमसंतमऽसंतमसंश्रिया। भजत मालतमाल समुद्युति-प्रचुरमर्त्यरमर्त्यपहं गुरुम्॥ 8 // भुजगचिह्न ममंदममंदकं , चतुर सादरसादर मानकम् / भृशममंदतमंदतरांहसं, वसुमती तमतीतरसं भजे // 9 // मुनिपते र मृतेर मृते शितु - श्चरणमक्षयमक्षयदं सदा अरितहन्तुरऽहन्तुरसाछ्ये, वितरसोदरसोदरसङ्गरे // 10 // भववृषाय वृषायतसंयमः, शुभवतो भवतो नवदो मम। सुखकृते खकृते विदितावधे, विमलधीमलधीरिमयुविभो ! // 11 // लेख संग्रह 119
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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