________________ इनकी रचनाओं को देखते हुए यह स्पष्ट है कि श्रीवल्लभ महाकवि थे, उद्भट वैयाकरणी थे, प्रौढ़ साहित्यकार थे और अनेकार्थादि-कोशों के साधिकृत विद्वान थे। इनके द्वारा निर्मित साहित्य इस प्रकार मौलिक ग्रंथ 1. विजयदेवमाहात्म्य-महाकाव्य, रचना-समय अनुमानतः 1687 2. अरजिनस्तव (सहस्रदलकमलगर्भितचित्रकाव्य) स्वोपज्ञटीका-सहित, रचना-समय 1655 और 1670 का मध्य विद्वत्प्रबोध स्वोपज्ञ टीका सहित - रचना-समय संभवतः 1655 और 1660 के मध्य, रचनास्थान बलभद्रपुर (बालोतरा) संघपति रूपजी-वंश-प्रशस्ति-काव्य र० सं० 1675 के बाद 5. मातृकाश्लोकमाला, र० सं० 1655, बीकानेर 6. चतुर्दशस्वरस्थापनवादस्थला 7. ओकेशोपकेशपदद्वयदशार्थी', र० सं० 1655, विक्रमनगर (बीकानेर) 8. खरतर पद नवार्थी टीका ग्रंथ 1. शिलोञ्छनाममाला-टीका', र० सं० 1654, नागपुर (नागौर) 2. शेषसंग्रहनाममाला दीपिका, र० सं० 1654, बीकानेर 3. अभिधानचिन्तामणिनाममाला - 'सारोद्धार'-टीका, र० सं० 1667, जोधपुर निघण्टुशेषनाममाला टीका", र० सं० 1667 के पूर्व . .. 5. सिद्धहेमशब्दानुशासन. टीका 6. हैमलिंगानुशासन - दुर्गपदप्रबोधवृत्ति, र०सं० 1661, जोधपुर 7. सारस्वतप्रयोगनिर्णय (1674 से 1690) 8.. 'केशाः' पदव्याख्या 2 9. विदग्धमुखमण्डन टीका 10. अजितनाथ स्तुति टीका३, र० सं० 1669, जोधपुर 11. शान्तिनाथविषमार्थस्तुति टीका 12. 'खचरानन पश्य सखे खचर' पद्यस्य अर्थत्रिकम् 13. 'यामाता' पद्यस्य अर्थपञ्चकम्१६ भाषा की लघु कृति 1. चतुर्दशगुणस्थान-स्वाध्याय 2. स्थूलभद्र इकत्रीसा गच्छ-संघर्ष-युग में भी स्वयं खरतरगच्छ के होते हुए तपागच्छ के प्रसिद्ध आचार्य विजयदेवसूरि के गुण-गौरव को सम्मान के साथ अंकित करते हुए विजयदेव महात्म्य की रचना करना कवि के उदार लेख संग्रह 115