________________ 10 - 2,55,350 सौख्यं पद के 10 अर्थ हैं। प्रत्येक अर्थ को 25575 के साथ संयुक्त करने पर अर्थात् दश गुणित करने पर कुल अर्थ 2,55,350 अर्थ हो जाते हैं। 2 - 5,10,700 पश्चात् 2,55,350 अर्थों को नञ् समासपूर्वक करने पर अर्थात् सुख शब्द दुःखार्थ में परिणत हो जाता है। सौख्यं - असौख्यं अर्थ होने पर द्विगुणित हो जाते हैं अतः कुल अर्थ 5,10,700 हो जाते हैं। 2 - इन अर्थों को काकूक्ति के अर्थ में ग्रहण करने पर द्विगुणित हो जाने से 10,21,400 10,21,400 अर्थ हो जाते हैं। 6 - पुनः ग्रन्थकार ने श्रृंखला नाम प्रश्नोत्तर जाति भेद से राजा जानो नोद दद दते ते असौ सौखी अग् पदार्थ से 6 अर्थ किये हैं। 10,21,406 1,000 - यहाँ कवि ने निर्देश दिया है कि प्रारंभ में जो राजानो शब्द के 1000 (वस्तुतः 1004 अर्थ . हैं) अर्थ इसमें सम्मिलित किये जाएँ। 10,22,406 1 - अन्त में एक अर्थ अकबर का किया है वह इस प्रकार है: राजा के र अ अज अ आ खण्ड कर र - श्री (पंक्तिरथ न्याय से) अ - अ. अज - क (ब्रह्म का पर्याय) अ - ब (वायु का पर्याय व बवयोः ग्रहण कर) आ - र (अग्नि का पर्याय) इस तरह राजा शब्द का अर्थ श्रीअकबर बनता है। 10,22,407 अन्त में कवि का कथन है कि 2,25,407 अर्थ जो अधिक हैं, ये अर्थ अष्टलक्षी में कहीं संभव नहीं हों, अथवा अर्थयोजना से मेल न खाते हों अतः इतने अर्थों का परित्याग कर देने पर 8,00,000 अर्थ अविघट एवं अविसंवादी रूप से शेष रहते हैं। सम्राट अकबर की प्रशंसा करते हुए कवि कहता है कि न्यायी होने से प्रजा को सुखदायक है, परम कृपाशील है, तीर्थस्थानों का करमोचक है, षड्दर्शनियों का सम्मान करने वाला है, शत्रुजयादि महातीर्थों की रक्षा करने वाला है, जैन आदि समस्त धर्मों का भक्त है तथा सब लोगों का मान्य है। इस प्रकार गद्य में कहकर 8 श्लोकों में अकबर की गौरव प्रशस्ति दी है। 'राजानो ददते सौख्यम्' पद की टीका होने के कारण कवि ने इस वृत्ति का नाम अर्थरत्नावली वृत्ति दिया है। इस पद्यांश के आठ लाख अर्थ होने के कारण इसका प्रसिद्ध नाम अष्टलक्षार्थी भी है। 110 लेख संग्रह