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________________ महोपाध्याय समयसुन्दर रचित अष्टलक्षी : एक परिचय सरस्वतीलब्धप्रसाद महोपाध्याय कविवर समयसुन्दर के नाम से कौन अपरिचित होगा? १७वीं शती के उद्भट विद्वानों में इनकी गणना की जाती है। ये न केवल जैनागम, जैन साहित्य और स्तोत्र साहित्य के ही धुरन्धर विद्वान थे, अपितु व्याकरण, अनेकार्थी साहित्य, लक्षण, छंद, ज्योतिष, पादपूर्ति साहित्य, चार्चिक, सैद्धान्तिक, रास साहित्य और गीति साहित्य के भी धुरन्धर विद्वान थे। राजस्थान में इनके लिये यह उक्ति प्रसिद्ध है - महाराणा कुम्भा रा भीतड़ा अर समयसुन्दर रा गीतड़ा। . कविवर सम्राट अकबर प्रतिबोधक और तत्प्रदत्त युगप्रधान पदधारक श्री जिनचन्दसूरिंजी के प्रथम . शिष्य श्री सकलचन्द्र गणिजी के शिष्य थे। कवि का जन्म विक्रम संवत् 1610 के लगभग सांचोर में हुआ था। ये प्राग्वाट् जाति के थे और इनके माता-पिता का नाम लीलादेवी और रूपसी था। विक्रम संवत् 1628-30 के मध्य में इनकी दीक्षा हुई होगी। इनकी शिक्षा-दीक्षा वाचक महिमराज (श्रीजिनसिंहसूरि) और समयराजोपाध्याय के सान्निध्य में हुई थी। इनका स्वर्गवास विक्रम संवत् 1703 चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन अहमदाबाद में हुआ था। इनकी विशाल शिष्य-प्रशिष्य परम्परा भी २०वीं शताब्दी तक विद्यमान थी। . कविवर को गणिपद गणनायक श्रीजिनचन्द्रसूरिजी ने ही विक्रम संवत् 1641 में प्रदान कर दिया : था। सम्राट अकबर को अपनी धर्मदेशना से प्रतिबोध देने के लिए जब आचार्य जिनचन्द्रसूरि लाहौर पधारे थे उस समय समयसुन्दरगणि भी साथ में थे। सम्राट अकबर ने जब श्री जिनचन्द्रसूरि को युगप्रधान पद और वाचक महिमराज (जिनसिंहसूरि) को आचार्य पद दिया था, उस समय महामंत्री कर्मचन्द बच्छावत कृत संस्मरणीय महोत्सव के समय ही जिनचन्द्रसूरिजी ने अपने करकमलों से समयसुन्दर को वाचनाचार्य पद से अलंकृत किया था। पूर्ववर्ती कवियों द्वारा सर्जित द्विसन्धान, पञ्चसन्धान, चतुर्विंशति सन्धान, शतार्थी, सहस्रार्थी कृतियाँ तो प्राप्त होती हैं जो कि उन कवियों के अप्रतिम वैदुष्य को प्रकट करती हैं, किन्तु समयसुन्दर ने 'एगस्स सुत्तस्स अणंतो अत्थो' को प्रमाणित करने के लिए 'राजानो ददते सौख्यम्' इस पंक्ति के प्रत्येक अक्षर के व्याकरण और अनेकार्थी कोषों के माध्यम से 1-1 लाख अर्थ कर जो अष्टलक्षी / अर्थरत्नावली ग्रन्थ का निर्माण किया, वह तो वास्तव में इनकी बेजोड़ अमर कृति है। समस्त भारतीय साहित्य में ही नहीं अपितु विश्वसाहित्य में भी इस कोटि की अन्य कोई रचना प्राप्त नहीं हैं। 'राजानो ददते सौख्यम्' पद के प्रत्येक अक्षर के लाखों अर्थ करने के लक्ष्य / प्रयोग को ध्यान में रखकर कवि ने अनेक ग्रन्थों एवं ग्रन्थकारों का उल्लेख करते हुए उदाहरण भी प्रस्तुत किये हैं। जिनमें से उल्लेखनीय कतिपय नाम इस प्रकार हैं: __ जैनागमों में - आवश्यक नियुक्ति, आवश्यक सूत्र बृहद्वृत्ति, स्थानांग सूत्र, जयसुन्दरसूरि कृत शतार्थी; पुराणों में - स्कन्धपुराण, महाभारत ; व्याकरण ग्रन्थों में - सिद्धहेम शब्दानुशासन - बृहन्न्यास - लेख संग्रह 108
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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