________________ आकर संघ के समक्ष कल्पसूत्र को ग्रहण किया। रात्रि जागरण करते हुए प्रात:काल वाजिवनिर्घोष के साथ, राजमार्ग पर होता हुआ जुलूस उपाश्रय में आया और उन्होंने कल्पसूत्र मुझे बोहराया। मैंने तेरह वाचनाओं से इसका पठन किया। पारणा के दिन पौषधग्राहियों को मिष्टान्न के साथ पारणक कराया गया। संघ में अट्ठाई आदि तपस्याएँ हुईं। इस प्रकार धर्म रीति के अनुसार महापर्व की आराधना कर हमने अपने जीवन को सफल किया है। तातपाद अर्थात् आप भी अपने यहाँ के पर्वाराधन के स्वरूप का वर्णन करें। अत्रस्थ महामन्त्री भागचन्द्र, सदारङ्गजी, भाणजी, राघव, वेणीदास, वाघा, वीरमदे, सामल, राजसी, ईश्वर, मन्त्री हमीर, भोजु, अमीपाल, तेजा, समूह, उग्र, मेहाजल, सिद्धराज, रेखा, सुरत्राण, वीरपाल, नृपाल, राजमल्ल, पीथा आदि समस्त संघ आपके चरण-कमलों की वन्दना करता है। __रचनाकार :- इस पत्र के लेखक ने अपना नाम स्पष्ट रूप से न देकर चतुर्थ चरण में शिष्याणुसिद्धान्तचारुरुचिः पर्यायवाची शब्दों से दिया है। सिद्धान्त शब्द से समय का ग्रहण किया गया है और चारु शब्द से सुन्दर का ग्रहण किया गया है। इस प्रकार प्रेषक का नाम समयसुन्दर सिद्ध होता है। दूसरा कारण यह भी है कि चतुर्थ चरण के अन्त में तत्पुनस्तातपादैरपि शब्द यह द्योतित करता है कि जिनचन्द्रसूरिजी समयसुन्दर जी के तातपाद अर्थात् दादागुरु होते हैं क्योंकि समयसुन्दरजी जिनचन्द्रसूरिजी के प्रथम शिष्य सकलचन्द्रगणि के शिष्य हैं। तीसरा कारण यह भी है कि स्वयं को शिष्याणु लिखते हैं जो उनकी अधिकांश कृतियों में प्राप्त होता है। रचना संवत् :- लेखक ने पत्र-प्रेषण का समय नहीं दिया है, किन्तु तृतीय चरण में जिनचन्द्रसूरि जी के वर्णन में जो प्रमुख कार्यों की गणना की है उसके अनुपात से पञ्च नदियों के पाँच पीरों का साधन उन्होंने विक्रम संवत् 1652 में किया था। 1652 के पश्चात् की किसी प्रमुख घटना का उल्लेख इसमें नहीं है। पाटण सं. 1657 में विराजमान आचार्य के आदेश से ही समयसुन्दरजी मेड़ता आए थे और आचार्यश्री का चातुर्मास खम्भात में था। चातुर्मास सूची के अनुसार सं. 1658 का चातुर्मास खम्भात में था। अतः अनुमान किया जा सकता है कि संवत् 1658 में खम्भात में विराजमान आचार्यश्री को यह पत्र प्रेषित किया गया था। प्रेषण स्थान :- चतुर्थ चरण में प्रेषक ने मालकोटात्तटान् मेदिनीतश्च का प्रयोग किया है। मेदिनी तट मेड़ता का प्रसिद्ध धाम है / और उस समय जोधपुर के अर्न्तगत मुख्य स्थान था। मालकोट शब्द यहाँ किस ग्राम-स्थान का बोधक है? यह चिन्तनीय है। प्रति :- राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर संग्रह में प्रेस कॉपी नम्बर 748 पर प्रतिलिपि सुरक्षित है जिसके छः पत्र हैं। ___ यह पत्र ऐतिह्य एवं महादण्डक छन्द में असाधारण रचना होने के कारण विद्वज्जनों के आह्लाद हेतु पठनीय है। 104 लेख संग्रह