________________ 1. शांब प्रद्युम्न चौपाई 2. मृगावती रास 3. सीताराम चौपाई 4. नल दमयन्ती चौपाई, 5. द्रौपदी चौपाई 6. चम्पक श्रेष्ठी चौपाई और शत्रुजय रास आदि 21 कृतियाँ प्राप्त हैं। चौबीसी, बीसी, छत्तीसी और भास आदि अनेकों कृतियाँ प्राप्त हैं / स्फुट रचनाओं में राजस्थानी भाषा में रचित स्तोत्र, स्तव, स्वाध्याय, गीत, वेली आदि लगभग 500 स्फुट रचनाएँ प्राप्त हैं, जिनका संग्रह 'समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि' पुस्तक के रूप में प्रकाशित हो चुका हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि महोपाध्याय समयसुन्दर असाधारण प्रतिभा के धारक थे। व्याकरण, साहित्य, न्याय, दर्शन और जैनागमों के धुरंधर विद्वान् एवं सफल टीकाकार थे। संवत् 1641 से लेकर 1702 तक निरंतर ये साहित्य सर्जना में रहे और माँ सरस्वती के भण्डार को पूर्ण रूप से समृद्ध करते रहे। इनकी गीती काव्यों की प्रचुरता को देखकर इनके संबंध में प्रसिद्ध उक्ति 'समयसुन्दर ना गीतडा, भीतां पर ना चीतरा या कुम्भा राणा ना भीतडा' को सहज भाव से स्वीकार करना ही पड़ता है। [राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर] 100 लेख संग्रह