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________________ यदर्ध्वरेखाभिधमंह्रिपंकजे, भवान्ततः पूज्यपदप्रलब्धवान्। प्रभो! महामात्यवितीर्णकोटिशः सुदक्षिणादोहद! लक्षणं दधौ॥१॥ अकब्बरोक्त्या सचिवेशसद्गुरुं, गणाधिपं कुर्विति मानसिंहकम्। गुरोर्यकः सूरिपदं यतिव्रतिप्रिया प्रपेदे प्रकृतिप्रिये वद // 2 // इसी प्रकार आचार्य मानतुंगसूरि प्रणीत भक्तामर स्तोत्र के चतुर्थ चरण पादपूर्ति रूप हैं। इसमें कवि ने आचार्य मानतुंग के समान ही भगवान आदिनाथ को नायक मानकर स्तवना की हैं। यह कृति भी अत्यन्त ही प्रोज्ज्वल और सरस-माधुर्य संयुक्त है। कवि का स्तव के समय भावुक स्वरूप देखिये और साथ ही देखिये शब्द योजना: नमेन्द्रचन्द्र! कृतभद्र! जिनेन्द्रचन्द्र! ज्ञानात्मदर्श-परिदृष्ट-विशिष्ट! विश्व!। .. त्वन्मूर्तिरर्तिहरणी तरणी मनोज्ञे- वालम्बनं भवजले पततां जनानाम्॥१॥ कवि की उपमा सह उत्प्रेक्षा देखिये: 'केशच्छटा स्फुटतरा' अधदंगदेशे, श्रीतीर्थराजविबुधावलिसंश्रितस्त्वम्। मूर्धस्थकृष्णतलिकासहितं च शृंग, मुच्चस्तटं सुरगिरेरिव शातकौम्भम्॥३०॥ कवि की संवत् उल्लेख वाली सर्वप्रथम रचना भावशतक है। इसकी रचना संवत् 1641 में हुई है। इसमें आचार्य मम्मट रचित काव्य प्रकाश में वर्णित ध्वनि को आश्रित करके वाच्यातिशायी व्यंग्य के कतिपय भेदों पर कवि ने इस भाव शतक पर विशदता से विचार किया है। भाषा ज्ञान:- कवि का जिस प्रकार संस्कृत भाषा पर अधिकार था उसी प्रकार प्राकृत, राजस्थानी, सिंधी आदि भाषाओं पर भी अधिकार था। प्राकृत और संस्कृत मिश्रित पार्श्वनाथ स्तोत्र का प्रथम पद्य देखिए:- . . 'लसण्णाण-विनाण-सन्नाण-गेहं, कलाभिः कलाभिर्युतात्मीयदेहम्। मणुण्णं कलाकेलिरूवाणुगारं, स्तुवे पार्श्वनाथं गुणश्रेणिसारम्॥१॥ ... इसी प्रकार राजस्थानी और संस्कृत मिश्रित पार्श्वनाथ अष्टक का एक पद देखिए: 'भलूं आज भट्यु, प्रभोः पादपद्मं, फली आस मोरी, नितान्तं विपद्मम्। * गयूं दुःखनासी, पुनः सौम्यदृष्ट्या, थयुं सुक्ख झाझं, यथा मेघवृष्ट्या // 1 // सिंधी भाषा में रचित स्तवन का एक पद देखिए: आवो मेरे बेठा पिलावा, बही बेड़ा गोदी में सुख पावा। मन्न असाडा बोल ऋषभजी, आउ असाढा कोल॥७॥ इसी प्रकार नेमिनाथ स्तवन की एक पंक्ति देखिए: भावंदा है मइकुं भावंदा है, नेमि असाढे आवंदा है . आया तोरण लाल असाढा, पसुय देखि पछिताउंदा है भइणा इनके द्वारा रचित स्तोत्र अष्टक के रूप में संस्कृत भाषा में पचासों स्तोत्र प्राप्त हैं, जिनमें कई स्तोत्र यमकप्रधान हैं, कई श्लेष प्रधान हैं, कई चित्रकाव्य प्रधान है। राजस्थानी कृतियाँ:- कवि ने संस्कृत साहित्य की तरह राजस्थानी भाषा में भी विशाल एवं विपुल साहित्य की रचना की। रास एवं चौपई संज्ञक गेयात्मक बड़ी-बड़ी कृतियों में से कुछ के नाम इस प्रकार हैं: लेख संग्रह
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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