________________ चतुःशरणप्रकीर्णकम् खण्डः-३ 124 अव. सर्वजीवानामहिंसा दयामर्हन्तः, तथा ब्रह्मव्रतमहन्तः / एवंविधा मम० / / 17 / / बाला. सर्व जीवनी अहिंसा तणो उपदेश देता, सत्यवचननो उपदेश देता, ब्रह्मव्रत चोथु व्रत मैथुनविरमण तेहनो उपदेश देता / / एहवा श्री अरिहंत होजो मुजनें शरण / / 17 / / ओसरणमुवसरित्ता चउतीसं अइसए निसेवित्ता / धम्मकहं च कहित्ता अरिहंता हुतु मे सरणं / / 18 / / .. टि. अवसृत्य प्राप्य / / 18 / / अव. ओसरणं समवसरणमुपसृत्योपविश्य चतुस्त्रिंशदतिशयान्निषेव्य आसेव्य धर्मकथां च कथयन्तः / एवंविधा० / / 18 / / बाला. समोसरणनइ विषइ बेसीनइ, चोत्रीस अतिशय पामीनइ, धर्मकथा प्रतिं कहता एहवा श्री अरिहंत होजो मुजनें शरण / / 18 / / श्री तीर्थंकरना चउत्रीस अतिशय लिखिइ छइं / श्रीजिननी काया अद्भूतरूप, अद्भूतगंध, रोग. रहित, मेल परसेवइ रहित होइ एतलइ एक अतिशय-१ श्री भंगवंतनो सास फूल सरिखो सुगंध होई -2 लोही मांस गायना दूध सरिखं होइ-३ आहार निहार कोई देखें नहीं-४ ए च्यारे अतिशय जनमथी मांडीने होई / एक जोअणना समोसरणमांहि देवनरतीर्यंचनी कोडाकोडि समाइं पंणि सांकडु न थाइं-१ श्री जिननी वाणी जोअणगामिणी देवनरतीर्यंच सहु कोइ समजइ-२ मस्तक पाछलें भामंडल होई-३ सवासो योजन मांहि रोग न होइ-४ वैर न होई-५ उंदरादिक इति न होइ-६ मारि न होइ-७ अतिवृष्टि न होइ-८ दुर्भिक्ष न होई-९ अवृष्टि न होई-१० स्वचक्र परचक्रनो भय न होई-११ ए अग्यार अतिशय केवलज्ञान उपना पछी उपजै / आकाशइ धर्मचक्र चालें-१ आकाशें चामर चालें-२ पादपीठ सहित सिंहासन आकाशइं चालें-३ त्रिण छत्र आकाशइं चालें-४ हजार जोयननो उंचो रतनमेरुनो महेंद्र ध्वज आगलि चालें-५ जिहां श्रीभगवंत पगला ठवें तिहां देवता अष्ट (नव) सोवनना कमल ठवइं-६ सोना रूपा रतनना तीन गढ देवता रचइ-७ समोसरणइं च्यार रूप च्यार मुख भगवंतने होइ-८ अशोकवृक्ष जोअण सुधी छाया करें-९ कांटा उंधा थाइ-१० वाटइं तरुअर नमइ-११ देवदुंदुभि वाजे-१२ वायु अनुकुल वाई-१३ / शकुन सव(घ)लां थाइ-१४ / सुगंधजलनी वृष्टि थाइ-१५। पंचवर्णफूलनी वृष्टि थाई-१६ / दीक्षा लीधां पछी केश-रोम नख वाधइ नहिं-१७ / थोडा तोहई च्यारनिकायना कोडि देवता सदाइ सेवा करे-१८ छ ए ऋतु पाँचेंद्रियना विषय अनुकूल हुवें-१९ ए उगणीस अतिशय देवताना किधा / एवं च्यार इग्यार अनइं उगणीस एतले चौत्रीस अतिशय थया / छः / श्री / श्रीः /