________________ चतुःशरणप्रकीर्णकम् खण्डः-३ बीजीवार मंगलीकने हेत; श्री तीर्थंकरनी माता चउदस सुपन देखइं, ते चउदै सुपनना नाम कहिस्यइ / त्रिजीवार मंगलीकने हेतइं श्री महावीर देवनइ नमस्कार करीनई ‘अमरिंद नरिंद' ए गाथाथी मांडीनइं चौसरण पयन्नुं करवू मांडस्यइ / पहिलु आवश्यक सामायिक-१ बीजूं आवश्यक चउवीसत्थो-२ त्रीजूं आवश्यक वांदणा-३ चो) आवश्यक पडिकमणु-४ पाँचमु आवश्यक काउस्सग्ग-५ छठे आवश्यक पच्चक्खाण-६ ए छ. आवश्यकनां नाम / छ आवश्यक स्वरूप जाणे तेह ज च्यार सरणनो अधिकारी हुइ / ते माटई पहिला छ आवश्यक स्वरूप कहई छई / सामायिकें करी सावद्ययोगनी विरति थाइं, चोवीसत्थे करी जिननी कीर्त्तना थाई, वांदणे करी गुणवंतनी भगति थाइं, पडिक्कमणे करी अतिचारनुं निंदवू थाई, काउस्सगे करी अतीचारनी शुद्धि थाइ / औषधनें पाटें करी चांदानीपरि व्रणचिकित्सा पचखाणे करी विरतिरूप गुणनी धारणा थाइं जिम पथ्य भोजनें करी रूधे चाँदइ, पुष्टि थाइं / / पहिली गाथाइ संखेपई छ आवश्यकनु स्वरूप कहीनें विस्तारे छ गाथाई छ आवश्यकनुं स्वरूप कहे छे, जे माटई चोसरण उत्तम अर्थ आराधवाने काजें भणवू अनें उत्तम अर्थ आवश्यक जाण्यां विना सधाइ नहि / / 1 / / चारित्तस्स विसोही कीरइ सामाइएण किल इहयं / सावजेयरजोगाण वजणाऽऽसेवणत्तणओ / / 2 / / ' टि. इहैव जिनशासने नान्यत्र / / 2 / / अव. इह जगति, किलेति सत्ये सामायिकेन चारित्रस्य विशोधिः क्रियते सावद्ययोगानां वर्जनत्वात् इतरेषामसावद्ययोगानामासेवनत्वात् / / 2 / / बाला. चारित्राचारनी विसोधि सामायिकई करी निश्चयइ करीइं / ए जिनशासननइ विषे योग कहतां मन वचन-काया ना योग-३ कहीइ सावद्य योग अने निरवद्य योग तेहनुं वर्जq अने सेवq ते थकी सावद्य योगनूं वर्जवं अनइं निरवद्य योगनूं सेववू ते सामायिक जाणवाउ / / 2 / / दसणायारविसोही चउवीसायत्थएण कजई य / अञ्चब्मयगुणकित्तणरूवेणं जिणवरिंदाणं / / 3 / / टि. चतुर्विशितेरात्मनां जीवानां जिनसम्बन्धिनां स्तवः क्रियते यत्र सचतुर्विशत्यात्मस्तवेन / / 3 / /