________________ उसहप्पहुणो वसंतृसवपेक्खण तओ परं अप्पाणं पसाहेइ अलंकरेइ य, तया पहुकयं पढमं पाणिग्गहणं दट्टणं लोगो वि अज्ज वि तह विवाहविहिं कुणेइ, 'महापुरिसेहिं पवडिओ मग्गो धुवो भव:' / पहुविवाहाओ अणंतरंदिण्ण कण्णाए परिणयणं संजायं। 'चूलो-वणयण-विज्जा आपुच्छाओ वि तओ पवट्टिया, एवं अप्पणो कायव्वं ति जाणमाणो सामी एवं सव्वं सावज्ज पि लोगाणुकंपाए पयट्टावेइ / पहुणो उवएसपरंपराओ अज्जाऽवि जयम्मि सव्वं कलाइयं इमं विउसेहिं सत्थरूवेण निबद्धं पयट्टइ / सामिणो सिक्खाए समग्गो वि लोगो दक्खो होत्था, 'उवएसगं विणा नरा वि पमुच आयरंति / ' जगवइणो रज्ज-ववत्था जगट्ठिइनाडगसुत्तहारो सामी तया उग्ग-भोग-रायण्ण-खत्तियभेएहिं चउबिहे जणे ठवेइ, तत्थ उग्गदंडाहिगारिणो आरक्खगपुरिसा उग्गा, इंदस्स तायत्तीसगा इव पहुस्स मंतिपमुहा भोगा, पहुणो समाणाउसा जे ते 'रायण्णा संजाया, अवसेसा पुरिसा खत्तिय त्ति होत्था / एवं नवीणं च ववहारववत्थं निम्मवित्ता विहू नवं रज्जसिरिं भुंजइ / वाहिचिइच्छगो वाहिजुत्तजणेसु जहा ओसढं देइ तह पहू दंडणिज्जलोगेमुं जहावराहं दंडं पउंजेइ, तो दंडभीया लोगा चोरिकाइगं नहि कुणंति, जओ एगा चिय दंडनीई सव्वाऽणीइसप्पवसीकरणजंगुलिमंतसरिसा सिया / मुसिक्खिओ लोगो पहुणो आणमिव कासइ खेत्तु-ज्जाण-गेहाईणं कोवि मज्जायं न अइक्कमेइ / जलहरो गज्जच्छलाओ जगप्पहुणो नायधम्म थुणमाणो सस्सनिष्फत्तिकए काले वरिसेइ / तया सस्सखेत्तेहिं इक्खुवाडेहिं गोकुलेहिं च परिपुण्णा जणा नियरिद्धीए पहुणो महिड्ढिपयंसगा विरायंति / हेय-गेज्झ-विवेगनाणकुसलीकएहिं लोगेहिं पहू पाएण विदेहखेत्तसंनिहं भरहखित्तं कुणेइ / रज्जाभिसेगाओ पारंभिऊण पुढवीं पालमाणो तिसद्धिं पुबलक्खाई नाभिनंदणो अइवाहेइ / उसहप्पहुणो वसंत्सवनिरिक्वणं -- एगया पहू मयणकयावासे वसंतमासे समागए समाणे परिवाराणुरोहाओउज्जाणम्मि गच्छित्था / तत्थ पुप्फाहरणभूसिओ जगप्पह पुप्फवासगेहे देहधारी पुप्फमासो 1 चूडोपनयन। 2 राजन्याः / 3 पुष्पमासः-वसन्तकालः / 10