________________ 68 . सन्दर्भग्रन्थाः नणु भणियमुस्सयंगुलपमाणओ जीवदेहमाणाई / देहपमाणं चिय तं न उ इंदियविसयपरिमाणं // 341 // जं तेण पंचधणुसयनराइविसयववहारवोच्छेओ / पावइ सहस्सगुणियं जेण पमाणंगुलं तत्तो // 342 // इंदियमाणेऽवि तयं भयणिज्जं जं तिगाउआईणं / जिब्भिदियाइमाणं संववहारे विरुज्झेज्जा // 343 // तणुमाणं चिय तेणं हविज्ज भणियं सुएऽवि तं चेव / एएण देहमाणाई नारयाईण मिज्जति // 344 // लक्खेहिं एक्कवीसाएँ साइरेगेहिं पुक्खरद्धम्मि / उदये पेच्छंति नरा सूरं उक्कोसए दिवसे // 345 // नयणिदियस्स तम्हा विसयपमाणं जहा सुएऽभिहियं / आउस्सेहपमाणंगुलाण एक्केणऽवि ण जुत्तं // 346 // सुत्ताभिप्पाओऽयं पयासणिज्जे तयं न उ पयासे / वक्खाणओ विसेसो नहि संदेहादलक्खणया // 347 // बारसहिंतो सोत्तं सेसाइं नवहिं जोयणेहिंतो / गिण्हंति पत्तमत्थं एत्तो परओ न गिण्हंति // 348 // दव्वाण मंदपरिणामयाएँ परओ न इंदियबलंपि / अवरमसंखेज्जंगुलभागाओ नयणवज्जाणं // 349 // संखेज्जइभागाओ नयणस्स मणस्स न विसयपमाणं / पोग्गलमित्तनिबंधाभावाओ केवलस्सेव // 350 // 'अप्पत्ते'त्यादि, नयनमनसी अप्राप्यकारित्वाद् रूपं न स्पृष्टमेव गृह्णतः, यदुक्तं-'विषयप्रमाणं च' तदिदानी प्रतीयते, 'णयणस्से'त्यादि, अयमत्र प्रक्रमः अत्र त्रिविधमङ्गलमुक्तं, आत्माङ्गलमुच्छ्याङ्गुलं प्रमाणाङ्गलं चेति, तत्राद्यं "जे णं जया मणूसा तेसिं जं होइ माणत्वं ति / तं भणियमिहायंगुलमणियतमाणं पुण इमं तु // 1 // " द्वितीयं तु"परमाणू तसरेणू रहरेणु अग्गयं च वालस्स / लिक्खा जूया य जवो अट्ठगुणविवड्डिया कमसो // 2 // " तृतीयं तु