________________ भाष्यगाथा-२३३-२४०] - "अणिउत्तो०" गाधाद्वयम् / तत्थ दव्वे गावी अणिउत्ता, दोहओ वि अणिउत्तो 1 / गावी अणिउत्ता, दोहओ णिउत्तो 2 / एवं चत्तारि भंगा / तत्थ पढमं भंगं वक्खाणेति अप्पण्हुया य गोणी, णेव य दुद्धा समुज्जओ दोद्धं / खीरस्स कओ पसवो, जइ वि य सा खीरदा घेणू // 237 // बीए वि णत्थि खीरं, थेवं व हविज्ज एव तइए वि / ___ अत्थि चउत्थे खीरं, एसुवमा आयरिय-सीसे // 238 // "अपण्हुगा०" गाधाद्वयम् / 'अपण्हुत 'त्ति अपण्हुता गावी, दोहतो वि ण 'दुहति / णत्थि खीरस्स पवित्ती / बितिए वि भंगे णत्थि चेव खीरस्स पसवो / अधवा थोवस्स होज्जा पवत्ती वातादीहिं / ततिए वि भंगे जत्थ गावी पण्हुता, दोहओ न दुहति, णत्थि चेव पसवो खीरस्स / थोवं वा होज्जा थणएसु गलंतेसु / चउत्थभंगे गावी पण्हुता, दोहतो वि दुहति / अत्थि खीरस्स पसवों / एसा चेव उवमा भावे अणुयोगस्स पसवे आयरिए सीसेसु य / आयरिओ अणिउत्तो, सीसा वि अणिउत्ता, णत्थि अणुयोगस्स पवित्ती / अणिउत्तो णिउत्तेसु णत्थि अणुयोगस्स पसवो / अधवा अणिच्छमाणमवि किंचि उज्जोगिणो पवत्तंति / तइए सारिते वा होज्ज पवित्ती गुणिते वा // 239 // "अधवा०" गाधा / अधवा होज्जा पवत्ती / कधं ? / ते उज्जोगमंता सीसा अणिच्छंतयं चेव पडिपुच्छादीहिं पवत्तेति / णिउत्तो आयरिओ, सीसा अणिउत्ता / एत्थ वि णत्थि पवत्ती / होज्जा वा पवत्ती सारेंते जधा, एवं अणियोगे भणितेल्लयं / अधवा असोतुकाममवि कंचि गुणणाणिमित्तं, माणस्स ओ त्ति सेलसमाणस्स कधिज्जा, बला वा घेत्तुं कहेज्जा-सुणेहि त्ति / एवं ततिए भंगे पवत्ती होज्जा / जधा-कोति णिउत्तो अणिउत्तारे य / एत्थ दिटुंतो अज्जकालया सागारियअप्पाहण, सुवण्ण सुयसिस्स खंतलक्खेण / कहणा सिस्सागमणं, धूलीपुंजोवमाणं च // 240 // "सागारिय०" गाधा / उज्जेणीए अज्जकालया नाम आयरिया सुत्त-ऽत्थोववेता बहुपरिवारा विहरंति / तेसिं च अज्जकालताणं सीसस्स सीसो सुत्त-ऽत्थोववेतो सागरो णामं सुवण्णभूमीए विहरति / ताधे अज्जकालया 'एते मम सीसा अणुओगं न सुणेति त्ति काउं किं एतेसिं मज्झे अच्छामि ? तहिं जामि जहिं अणुओगं पवत्तेमि / अवि य-एते वि सिस्सा लज्जाहिताए सोच्छिहिति' काउं सेज्जायरं आपुच्छंति-'अहं जामि अण्णत्थ, ४ण सुणेहिति 1. पडिदुहति पू० 1 / 2 / 2. अणुओगे पू० 1-2 / 3. अणिउत्तो पू० 1 // 4. तो पू० 2, पा० /