________________ भाष्यगाथा-३९-४५] कतिविधं ? भण्णति–चोद्दसए त्ति (गा० 3) / अस्य व्याख्या अक्खर सण्णी सम्मं, सातियं खलु सपज्जवसितं च / गमियं अंगपविटुं, सत्त वि एते सपडिवक्खा // 42 // अक्खरतिगरूवणया,पढमणयादेसतो ण तं खरति / अभिलप्पा पुण भावा, होति खरा अक्खरा चेव // 43 // * "अक्खरसण्णी०" गाहा / "तत्थक्खर" त्ति, "अक्खरतिगरूवण०" गाहा, अक्खरतिगस्स परूवणा कायव्वा / अत्र बंधानुलोम्यात् प्रशब्दस्य लोपः कृतः / का य सा परूवणा ? इमा-अक्खरं तिविहं / सण्णक्खरं लद्धिअक्खरं वंजणक्खरं च / अक्खरमिति किं भणियं होति ? भण्णति-पढमनयादेसतो ण खरतीति अक्खरं / पढमो त्ति आदिणेगमो, आदेसओ त्ति मलं / तो पढमणयमतेन अणुप्पण्णं णाणं जीवाओ ण क्खरइ / जे पुण तेहिं अक्खरेहि अभिलप्पंति अत्था ते क्खरा वा होज्जा अक्खरा वा / घटादी क्खरा / धम्मत्थिकायादि अक्खरा / अहवा अक्खरा क्खरा णिच्चाणिच्च त्ति भणियं होइ / क्षर संचरणे। आह–केरिसं सण्णक्खरं ? भण्णइ संठाणमगाराई अप्पाभिप्पायतो व जं जस्स / "संठाणमगारादी०" गाहापुव्वद्धं / जहा 'वज्जाकृती मगारे'१ / आदिग्रहणेणं सव्वक्खराणं संठाणमभिधेयं२ / जो वा 'अप्पणो अभिप्पाओ' तेण अक्खरस्स संठाणं३ करेज्जा / यथा पुष्करसार्यां लिप्यां वज्रमित्यादि / इदाणि लद्धिअक्खरं... लद्धी पंचविगप्पा, जस्सुवलब्भो उ जो अत्थो // 44 // "लद्धी पंचविय०" पच्छद्धं / सोतिदियलद्धी जाव फासिंदियलद्धी / ततो लद्धीतो अक्खरं लद्धिअक्खरं / “जस्स'' त्ति / जस्स इंदियस्स 'जो अत्थो उवलब्भो' त्ति उवलंभणीयो, जहा सोइंदियस्स सद्दो उवलब्भो जाव फासिंदियस्स फासो त्ति / तातो उवलंभाओ अत्थाओ अक्खराणं लद्धी उप्पज्जइ / जहा संखसद्देण संखणादोवलंभो / दोण्ह वा अक्खराणं लंभो भवति / एवं सेसेंदिएसु वि भासियव्वं लद्धिअक्खरं / / सामण्ण विसेसेण य, दुविहवलद्धी उ पढमिय अभेया। तिविहा य अणुवलद्धी, उवलद्धी पंचहा बिइया // 45 // 1. वज्राकृतिर्मकारो पा० / ०मगारो पू० 1 // 2. सन्नाणम० पू० 1 / 3. सन्नाणं क० पू० 2 / .. 4. उवलंभो पू० 2 विना /