________________ बृहत्कल्पचूर्णिः॥ [पीठिका "सामण्ण विसे०" गाहा / अहवा लद्धिअक्खरं दुविहं-सामण्णलद्धिअक्खरं च विसेसलद्धिअक्खरं च / 'पढमिय'त्ति सामण्णलद्धी, अभेद त्ति विशेषविमुखाऽऽदौ स्कंधावारोपलब्धिवत् / एसा य उवलद्धी अणुवलद्धि' उवेक्खिऊण भवति त्ति / अओ अणुवलद्धी वत्तव्वा / सा तिविहा अच्चंता सामण्णा, य विस्सुती होइ अणुवलद्धीओ। सारिक्ख विवक्खोभय, उवमाऽऽगमतो य उवलद्धी // 46 // "अच्चंता साम०" गाहापुव्वद्धं / अच्चंताणुवलद्धि त्ति / अस्य व्याख्या अत्थस्स दरिसणम्मि वि, लद्धी एगंततो ण संभवइ / दर्दू पि ण याणंते, बोहिय पंडा फणस सत्तू // 47 // "अत्थस्स दरिसणम्मि वि०" गाथा / 'बोधिकाः' नाम पेरंता म्लेच्छाः / तेषां फणसो अत्यन्तपरोक्षः / 'पंडा' इति पाण्डुमधुरा तेषामपि सक्तवोऽत्यन्तपरोक्षाः / सामान्यानुपलब्धिरिदानीम् अत्थस्स उग्गहम्मि वि, लद्धी एगंततो ण संभवति / सामण्णा बहुमज्झे, मासं पडियं जहा दटुं // 48 // "अत्थस्स उग्गहं०" गाहा / कण्ठ्या / 'सामण्णं' त्ति, सामान्यानुपलब्धिः / विस्मृत्यनुपलब्धिरिदानीम् अत्थस्स वि उवलंभे, अक्खरलद्धी ण होइ सव्वस्स / पुव्वोवलब्धमत्थे, जस्स उणामं ण संभरति // 49 // "अत्थस्स वि उवलंभे०" गाहा / कण्ठ्या / अनुपलब्धिरुक्ता / उपलब्धिः पंचहा। "बितिय"त्ति [गा० 45] विशेषोपलब्धिः / अस्या व्याख्या सारिक्ख विवक्खेहि य, लभति परोक्खे वि अक्खरं कोइ। सबलेर-बाहुलेरा, जह अहि-नउला य अणुमाणे // 50 // "सारिक्ख विव०" पच्छद्धं (गा० 46) / सारिक्खविवक्खोवलद्धीओ जुगवं वक्खाणेति / "सारिक्ख विवक्खे०" गाहा / कण्ठ्या / "अणुमाणे"त्ति / सर्पदर्शनान्नकुलोन्मीयते नकुलदर्शनाच्च तद्विपक्षः सर्प इति / "उभयोपलब्धिः" / अस्या व्याख्या 1. अणुवलद्धी पू० 2 / 2. अस्या पू० 2 / 3. उवलद्धी पंचविहा पा० / उवलद्धी पंचहा पू० 2 / 4. नकुलोऽनुमीयते पू० 1 /