________________ 220 बृहत्कल्पचूर्णिः // [पीठिका 106 635 185 175 153 105 632 185 175 153 611 136 656 157 614 157 34 168 136 659 157 186 52 186 38 171 119 42 38 155 167 . दृट्टण जिणवराणं दमए दूभगे भट्टे दव्ववती दव्वाई दव्वसुतं पत्तगपुत्थ० दव्वस्स उ अणुओगो दव्वाइ उज्झियं दव्व० दव्वाइचउक्कं वा दव्वाइ दव्व हीणा० दव्वाणं अणुयोगो दव्वाण दव्वभूतो दव्वादिकसिणविसयं दव्वादी एक्वेक्को दव्वासण्णं भवणा० दव्वे णियमा भावो दव्वेणेगं दव्वं दव्वे तिविहं एगिदि दव्वे तिविहं एगिदि० दव्वे नाणापुरिसे दव्वे पुण तल्लद्धी दब्वे भावे य चलं दंडिय असोव तिच्चिय दंसणमोग्गह ईहा दसणमोहे खीणे दंसिय छंदिय गुरु से दाउं व उड्डरुस्से दारुं धातुं वाही दावद्दविओ गइ चं० दाहिणकरेण कोणं दिटुंतो घडकारो दिट्ठमदिट्टे दिटुं दित्तमदित्ता तिरिया दिसपवणगामसूरिय दुरधितविज्जो पच्चं० दुविधा सामायारी दुविधो लिंग विहारे दुविहकरणोवघाया 38 671 450 169 154 604 651 142 2 ل Mr. 674 455 169 154 607 654 142 14 507 432 133 124 513 625 216 755 669 309 664 426 461 374 780 760 583 لن mr 622 215 752 666 306 661 424 170 85 169 114 121 102 197 192 372 777 757 150 580