________________ बृहत्कल्पचूर्णिः // [पीठिका 327 256 275 205 262 233 236 62 325 255 273 204 260 230 235 240 731 202 149 150 271 431 241 734 186 218 णाम णिवाउवसग्गं णामसुय ठवणसुयं णामे छव्विध कप्पो णायज्झयणाहरणा णावाति उवक्कमणं णिउणे णिउणं अत्थं णिउत्ता अणिउत्ताणं णिउत्तो उभयकालं णिक्कारणम्मि णामं णिक्खेवा य णिरुत्ता० णिक्खेवेगट्ठ णिरुत्त णिक्खेवो णासो त्तिय णिक्खेवो होइ तिहा णिग्गंथाणं पढमं णिच्चणियंसण मज्जण णिच्चणियंसणियं ति य णिच्छयतो सव्वगुरुं णिच्छियमुत्त निरुत्तं णिहाविगहापरिवज्जि० णिद्दोसं सारवंतं च णिप्फाव कोद्दवाईणि णियमा सुयं तु जीवो णिरवयवो ण हु सक्को णिस्साणपदं पीहइ णीहम्मियम्मि पूरति णेगंतियं अणच्चं० णेरुत्तियाइँ तस्स उ णेहि जितो मित्ति अहं 38 115 165 644 645 0 203 149 150 273 436 647 648 65 188 806 284 805 139 214 774 382 188 m 803 203 77 , 203 282 802 35 139 213 771 196 , 104 6 380 10 311 358 314 360 135 161 525 625 466 तज्जाय जुत्तिलेवो तण विणण संजयट्ठा तत्तो इत्थिणपुंसा तत्तो य वग्गणाओ तत्थावायं दुविहं तत्थेगो उ नियत्तो तदभावे न दुमु त्तिय तदुभयकप्पिय जुत्तो 528 628 470 68 422 104 311 124 21 113 420 103 308 409 411