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________________ 216 बृहत्कल्पचूर्णिः // [पीठिका 218 217 160 160 667 602 40 169 154 599 16 27 366 101 364 581 578 599 324 90 176 694 243 416 112 182 11 135 60 721 25 529 596 322 * 691 242 412 718 25 526 222 368 जं पि य दारूं जोग्गं जंबुद्दीवपमाणं जं होइ पगासमुहं जा खलु जहुत्तदोसे० जा गंठी ता पढमं जाणंतिया अजाणं० जाणति य पिहुजणो वि हु जा ताव ठवेमि वए जा मंगल त्ति ठवणा जावंतिया उ सेज्जा जावतिया उस्सग्गा जिणकप्पिओ गीयत्थो जितपरिसो जितणिद्दो जीवाजीवाभिगमो जीवाजीवे ण मुणइ जीवो अक्खो तं पड़ जुत्ति उ पत्थरायी जे उ अलक्खणजुत्ता जे खलु अभाविता कुस्सु० जे चित्तभित्तिविहिया जे जम्मि उउम्मि कया जे जम्मि जुगे पवरा जेण उ सिद्धं अत्थं जेण विसिस्सति रूवं जे पुण अभाविता ते जे रायसत्थकुसला जे लोगवेदसमए० जेसि पवित्तिणिवित्ती जे होति पगतिमुद्धा जे उ उदिण्णे खीणे जो उत्तमेहिँ पहओ जो खलु सतंतसिद्धो जोगमकाउमहागडे जो चरिमपोग्गले पुण जो चेव बली' गमो जो चेव य हरिएसुं जो जधा वट्टए कालो 223 370 453 201 179 261 344 384 383 448 201 179 259 342 382 381 86 369 122 367 129 249 181 607 250 181 610 123 561 510 130 156 32 144 132 558 506 297 . 295
SR No.004440
Book TitleBruhatkalp Sutram Pithika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheelchandrasuri, Rupendrakumar Pagariya
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2008
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bruhatkalpa
File Size20 MB
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