________________ 215 97 143 बृहत्कल्पसूत्र-चूर्णि-पीठिकाविभागसत्क-गाथानां अनुक्रमणिका छड्डेउं भूमीए. 353 छड्डेऊण व जइ गया 556 छण्णालयम्मि काऊण 376 छत्तंतियाए पगतं 401 छम्मास अपूरित्ता 771 छव्विह सत्तविहे या 276 छायाए णालियाइ व 263 छिज्जते विण पावेज्ज 714 103 108 195 74 70 351 553 374 399 768 274 261 711 732 729 485 22 22 305 308 252 489 247 128 251 486 246 74 635 م س 163 638 637 145 163 634 37 207 जइ णत्थि कओ णामं जइ वा हत्थुवघाओ जइ वि य तिट्ठाण कयं जति एव सुत्तसोवीर० जति कप्पादणुयोगो जति णेवं तो पुणरवि जति पवयणस्स सारो जति पुण सो वि वरिज्जेज्ज जति रज्जाओ भट्ठो जति रणो भज्जाए जति वि य भूतावादे जति वि य वत्थू हीणा जति सव्वं चिय णामं जत्थ मती ओगाहति जत्थऽम्हे पासामो जध अरणी णिम्मवितो जध सव्वजणवएसुं जमिदं पगयं इंदो जम्हा उ मोयगे अभि० जह इंदो त्ति य एत्थं जह ठवणिंदो थुव्वइ जह मयणकोद्दवा ऊ जह वा तिण्णि मणूसा जं अब्भुविच्च की जं जं सुयमत्थो वा जं जस्स णत्थि वत्थं जं तं दुसत्तगविधं जं तु निरंतरदाणं 733 232 439 57 186 61 116 145 206 730 232 434 225 205 17 226 206 17 59 11 9 29 110 103 183 758 618 177 302 102 183 755 191 158 615 40 177 300