________________ 14 "मोक्खं सतीत्येवं काले प्रवर्ध(त)माने // गंभूता चतुश्चत्वारिंशच्छतपथके देवश्रीभोपलेश्वरशासनारूढभुज्यमानराजश्रीवैजलदेवेन पट्टित 'चाहरपल्लि' ग्रामे तद्वास्तव्ये० साउकउद्यव० शोभनदेवेन कल्पचूर्णिपुस्तकं पुस्तकसवलकद्रव्यं वृद्धि नीत्वा तेनैव श्रीमज्जिनभद्राचार्याणामर्थे लेखकसोहडपााल्लिखापितेति // छ / यादृशं पुस्तके दृष्टं तादृशं लिखितं... शुद्धमशुद्धं वा मम दोषो न दीयते // सुरसरि सुरगिरि सुरतरु सुरनाहो जाव सुरालया संति / विउसेहि पढिज्जंतं ताव इमं पुत्थयं होउ / छ / मंगलं महाश्रीः // शुभं भवतु // लेखकपा.... Reference. There is a Ms. of Behatkalpacurni in the Limdbi Bhandara. See its Catalogue No. 1852 पू० नं २-पूना, भाण्डारकर ग्रन्थसूचि में इसका नं० 582 है / इसके कुल पेज 465 है। इस ग्रन्थ का लेखक "नमः प्रवचनाय" मंगलादीणि सत्थाणि....से प्रारम्भ कर "म वा पावतीति" कल्पचूर्णी समाप्ता, से इसका लेखन पूर्ण करता है। इस प्रत का लेखन संवत् 1334 मार्गशीर्षसुदि 13 गुरुवार का है / लेखक ने इसका ग्रन्थान 14000 का दिया है। इसकी प्रशस्ति इस प्रकार है पू० नं 2-Age.-Samvat 1334. Begins.-fol. 159b नमः प्रवचनाय // मंगलादीणि सत्थाणि / मंगलमज्झाणि मंगलावसणाणि // मंगलपरिग्गहिया य सिस्सा / सुत्तत्थाणं अवग्गहेहावायधारणासमत्था भवंति / तानि चादिमध्यावसानमंगलात्मकानि सर्वाणि लोके विराजंति // विस्तारं च गच्छंति // etc. Ends.-fol. 465 अप्पमादिणं गुणो etc., up to सो(मो)क्खं practically as in No. 582 followed by वा पावतीति कल्पचूर्णी समाप्ता // छ / संवत् 1334 वर्षे मार्गशुदि 13 गुरौ // कल्पचूर्णी समाप्ता [:] // शुभं भवतु सर्वजगतः अंकतो(5)पि ग्रंथ (सहस्राणि)......१४००० प्रत्यक्षरगणनया निनीत // छ / Reference.-In Jaina Granthavali (p. 12), it is remarked that on p. 49 of Deccan College (?) Pralamba Suri is mentioned as the author of Brhatkalpacurni. प्रत नं० 3, संघवी पाडा पाटण ज्ञान भण्डार (वर्तमान में श्री हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञान भण्डार पाटण) की है / ग्रन्थ सूचि में इसका नं० पा० ता० हेम० सं० 9, पेटांक 2 / इसके