________________ कुल पत्र 1-393 है / लेखन संवत् 1291 वर्षे पोस सुदी 4 सोमे / ऐसा अन्त में लिखा है प्रत की स्थिति अच्छी है / प्रत अशुद्धप्राय है / "प्रति नं०४ __यह प्रति श्रीशान्तिनाथ खंभात ताडपत्रीय जैन ज्ञान भण्डार की है। खंभात ग्रन्थ सूचि में इसका नं० 8465 है। इसमें लेकन संवत् नहीं है / लेखन शैली से यह ज्ञात होता है कि यह १३वीं सदी के उत्तरार्द्ध में लिखी गई हो / इस प्रत के तीन पृष्ठ नहीं है / प्रत नं०५ यह कागज पर लिखी गई है। इसमें भी लेखन संवत् नहीं है। १५वीं सदी में इसका लेखन हुआ हो ऐसा अनुमान किया जा सकता है / लेखक ने पाटण की ताडपत्रीय प्रति के आधार से इस प्रति का लेखन किया हो ऐसा प्रतीत होता है। क्योंकि इसके प्रायः पाठ पाटण की ताडपत्रीय प्रति से मिलते हैं / पाटण की ताडपत्रीय प्रति के कई पाठ विशेषचूर्णि का अनुसरण करते हैं। ___उदाहरणार्थ विशेष चूर्णि पृ० के 10-12 पन्नों के पाठ अक्षरशः पाटण की चूर्णि में लिए है / ये पाठ विशेषचूर्णि पाटणस्थ प्रति, कै०ज्ञा० प्रति में ही है किन्तु पूणे की दो प्रतों में, लाद० भण्डारगत बीसवीं सदी की कागज की प्रत में, एवं खंभात भण्डारस्थ ताडपत्रीय प्रत में नहीं है, किन्तु पाटण की प्रत में तथा श्री कैलाश सागरसूरि ज्ञान भण्डार की प्रत में ही मिलते हैं / यह पाठ विशेषचूर्णि से लिए गए हो ऐसा पठन से प्रतीत होता है। साथ ही में व्यंजन परिवर्तन भी समान रूप से इन दो ही प्रतियों में मिलते हैं। प्रतों की विशेषता . इन पाँचों प्रतों के लेखक ने बड़े सुन्दर अक्षरों में इन प्रतियों को लिखा है। प्रायः प्रतियाँ शुद्धाशुद्ध हैं, कहीं कहीं लेखनदोष दृष्टिगोचर होते हैं / इन प्रतियों में व्यंजनपरिवर्तन अधिक मात्रा में होने से इनकी एकरूपता सुरक्षित नहीं रह सकी / पूना की ताडपत्रीय प्रति एवं पाटण की ताडपत्रीयों में व्यंजनपरिवर्तन इस प्रकार के मिलते हैं जैसे ह के स्थान में भ, भ के स्थान में ह का प्रयोग सर्वत्र मिलता है-जैसे होति, हवति, होइ, भवति / ब के स्थान में प- बाल = पाल, बहु-पभु / इसके अतिरिक्त व-ब, च-व, त्थ च्छ त्थ, प ए, ए प, ट्ट 6, 6, ट्ट, ट्ठ द्ध, द्ध टु, उ, ओ, ओ उ, य इ, इ य, अक्षरों के बीच के भेद को न समझने कारण लिपिक ने एक अक्षर के स्थान पर दूसरा अक्षर लिख दिया है / क्ख, पण, म्म टु, च्छ, त्थ जैसे संयुक्त अक्षरों के स्थान पर ख, ग, म, ठ, छ, थ भी