________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1-6-1-5 (190) 17 .. तथा देवगति में देवों की चार लाख योनीयां हैं एवं छब्बीस (26) लाख कुलकोटी है... देवों को भी ईर्ष्या, खेद, मत्सर एवं च्यवन (मरण) का भय शल्य के समान सतत मानस (चित्त) में चुभता रहता है... अतः देवों को भी दुःख हि दुःख है... देवों को भी सुख नहि है; किन्तु जो है वह मात्र सुखाभास हि है... कहा भी है कि- च्यवन (मरण) एवं इष्ट वियोगादि के दुःख देवों को भी सदा होता है... तथा क्रोध, ईर्ष्या, मद (अभिमान) मदन याने काम विकार आदि से भी देव पीडित होते रहते हैं... अतः हे आर्य ! हम आपसे प्रश्न करतें हैं कि- आप हि विचार करके कहो कि- देवलोक में भी देवों को सुख क्या है ? इत्यादि... - जीव . योनी. कुलकोटी 1 पृथ्वीकाय 7,00,000 12,00,000 2 अप्काय 7,00,000 7,00,000 3 . तेउकाय 7,00,000 3,00,000 वाउकाय 7,00,000 . 7,00,000 प्रत्येक वनस्पतिकाय 10,00,000 / 28,00,000 साधारण वनस्पतिकाय 14,00,000 / बेइंद्रिय जीव 2,00,000 7,00,000 तेइंद्रिय जीव 2,00,000 8,00,000 चरिंद्रिय जीव 2,00,000 9,00,000 . 4,00,000 पचीन्द्रय तिर्यंच पंचेन्द्रिय जलचर पंचेन्द्रिय खेचर पंचेन्द्रिय चतुष्पद पंचेन्द्रिय उर:परिसर्प पंचेन्द्रिय भुजपरिसर्प 12,50,000 12,00,000 10,00,000 10,00,000 9,00,000 देव नारक 4,00,000 4,00,000 26,00,000 25,00,000 14,00,000 12,00,000 मनुष्य चार गति में कुल योनियां... 84,00,000 कुल... 1,97,50,000 कुलकोटी...