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________________ 16 1-6-1- 5 (190) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन लाख कुलकोटी तथा चरिंद्रिय जीवो की दो लाख योनीयां एवं नव लाख कुलकोटी होती हैं तथा उनको भूख, तरस, शीत, गरमी आदि से होनेवाले अनेक प्रकार के दुःख (वेदनाएं) होतें है... तथा पंचेंद्रिय तिर्यंच जीवों की चार लाख योनीयां होती है और उनकी कुलकोटी (53,50,000) साढे त्रेपन लाख होती हैं... वे इस प्रकार है। पंचेन्द्रिय जलचर तिर्यंच जीव - 12.50.000 पंचेन्द्रिय खेचर तिर्यंच जीव - 12,00,000 पंचेन्द्रिय चतुष्पद तिर्यंच जीव - 10,00,000 पंचेन्द्रिय उर:परिसर्प तिर्यंच जीव - 10,00,000 पंचेन्द्रिय भुजपरिसर्प तिर्यंच जीव - 9,00,000 पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीवों की - 53,50,000 कुलकोटी हैं... विकलेंद्रिय एवं पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीवों को भूख-तरस-ठंडी-गरमी आदि जो जो वेदनाएं हैं; वे यहां मनुष्यों को प्रत्यक्ष हि है... तथा अन्यत्र भी कहा है कि- तिर्यंच जीवों को भुख, तरस, ठंडी, गरमी, भय एवं मनुष्यों की ताबेदारी में रहना इत्यादि दुःखों से पीडित इन तिर्यंच जीवों को यदि सुख की बात हि दुर्लभ है... तब फिर सुख की प्राप्ति कहां से हो ? / तथा मनुष्य गति में भी मनुष्यों की चौदह लाख योनीयां हैं; एवं बारह लाख कुलकोटी हैं, इन मनुष्यों को भी वेदना-दुःख अनेक हैं जैसे कि- सर्वप्रथम स्त्री (मां) की कुख में गर्भकाल दरम्यान जीव को बहोत कष्ट होता हैं... तथा जन्म होने के बाद बाल्यकाल में मल-मूत्र से लिप्त शरीर, स्तनपान, धूली क्रीडा आदि तथा यौवनकाल में भी अर्थोपार्जनादि के कष्ट एवं इष्ट वियोगादि से विरह दुःख होता हैं तथा वृद्धावस्था तो दुःखमय है हि... अत: हे मनुष्य ! आप कहो कि- इस संसार में क्या अल्प मात्र (थोडा) भी सुख है क्या ? // 1 // तथा यदि बाल्यकाल से हि ऐसा कोइ रोग शरीर में हो कि- मरण पर्यंत उसकी वेदना रहे... तथा मान लो कि- कोइ शारीरिक पीडा नहि भी है; तो भी शोक-संताप-इष्ट वियोगदरिद्रता आदि अनेक प्रकार के दुःख मनुष्यों को होता हि है... // 2 // भूख, तरस, शीत, गरमी, दरिद्रता, शोक, प्रियवियोग, दुर्भाग्य, मूर्खता, अनादर, कुरूपता एवं रोगादि के दुःखों से मनुष्य स्वतंत्र तो नहि है... इत्यादि... // 3 //
SR No.004437
Book TitleAcharang Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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