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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका #1-6-1-5 (190) 15 भेदन तथा उन शस्त्रों से कटे हुए हाथ, कान ओष्ठवाले तथा हृदय और पेट के भेदन से बाहार निकले हुए आंतरडावाले और आंखे फोड दी होने के कारण से वे नारक-जीव अतिशय दुःखों से पीडित हैं... // 2-3 // तथा विषम कर्मो के उदय में अंध बने हुए वे नारक-जीव नरकभूमी में दीन एवं दुःखी होते हुए उच्छलतें हैं; गिरतें हैं; विविध प्रकार की चेष्टां (दुःख से बचने के लिये उपाय) करते * हुए भी उनको दु:खों से बचानेवाला कोइ दिखता नहि है... // 4|| . कृपण याने कठिन कर्मो के उदयवाले उन नारक-जीवों के यमराज जैसे तीक्ष्ण कुहाडी एवं तरवार से टुकडे टुकडे कीये जाते हैं; और; करुण रुदन करनेवाले उन-नारकों को विष याने जहरवाले साप-बिच्छु आदि डंख देते हैं... तथा लकडे की तरह करवत से उनके शरीर को फाडे (काटे) जातें हैं, तथा दोनों हाथों के टुकडे टुकड़े किये जाते हैं... और कुंभी में रखकर नारकों को त्रपु (सीसा) गरम करके पीलाया अर्थात् त्रपुपान कराया जाता है; अत: उनके शरीर में दाह-ज्वलन वेदना होती है... अंगारे के समान अंबरीष (परमाधामी-देव) के अग्नि की ज्वाला में “त्राहि मां' ऐसा पोकार करते हुए उन नारकों को सेके जाते हैं... // 5 // तथा प्रज्वलित अंगारे के तुल्य वज्रभवन में प्रज्वलित अंगारों में उन नारकों को जलाये जाते हैं, इस परिस्थिति में उंचे हाथ एवं मुख करके रोते हुए, करुण आवाजवाले एवं चारों और रक्षण के लिये नजर करनेवाले शरण रहित ऐसे उन नारकों को बचानेवाला वहां कोई नहि है... इत्यादि... // 6 // तथा तिर्यंच (पशु) गति में भी पृथ्वीकाय जीवों की सात लाख (7,00,000) योनीयां हैं; एवं उनके सात लाख कुलकोटी है तथा यहां पृथ्वीकाय जीवों को भी विभिन्न प्रकार की अनेक वेदनाएं हैं... तथा अग्निकाय जीवों की सात लाख योनीयां हैं; एवं उनके तीन लाख कुलकोटी हैं... अग्निकाय जीवों को भी विभिन्न प्रकार की बहोत वेदना है... तथा वायुकाय जीवों की भी सात लाख योनीयां हैं... एवं सात लाख कुलकोटी हैं तथा उनको शीत एवं उष्ण (गरमी) से होनेवाली अनेक वेदनाएं होती है... तथा प्रत्येक वनस्पतिकाय जीवों की दश लाख योनीयां हैं; एवं साधारण वनस्पतिकाय जीवों की चौदह लाख योनीयां होती है, और इन दोनों प्रकार के वनस्पतिकाय जीवों की अट्ठाइस (28) लाख कुलकोटी होती है... इस वनस्पतिकाय में उत्पन्न होनेवाले जीव वहां अनन्तकाल पर्यंत छेदन-भेदनादि से होनेवाली अनेक प्रकार की वेदनाओं को पाते हैं तथा विकलेन्द्रिय जीवों को दो-दो लाख योनीयां होती है, अर्थात् बेइंद्रिय जीवों की दो लाख योनीयां सात लाख कुलकोटी तथा तेइंद्रिय जीवों की दो लाख योनीयां एवं आठ
SR No.004437
Book TitleAcharang Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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