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________________ 101 -6-1 - 3 (188) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन स्वरूप है... और वातादि के दोषों की विभिन्नता से अट्ठारह भेद होते हैं... तथा राजांस याने राजयक्ष्म (क्षय-T.B.) यह क्षयरोग संनिपात से होनेवाले चार कारणों से होता है... वेगरोध, वेगक्षय, साहस एवं विषमाशन... तीन दोषवाला राजयक्ष्मा और चार दोषवाला गद... तथा अपस्मार- वात-पित्त, श्लेष्म और संनिपात के भेद से चार प्रकार का अपस्मार होता है... अपस्मार रोगवाला प्राणी सद् एवं असद् के विवेक से शून्य होता है तथा भ्रम, मूर्छा आदि अवस्था को प्राप्त करता है... कहा भी है कि- भ्रमावेश, ससंरंभ, द्वेषोद्रेक, हृतस्मृति, यह अपस्मार रोग अतिशय घोर भयानक है... तथा काणियं याने आंख का रोग... वह दो प्रकार से है... 1. गर्भ में रहे हुए को, 2. जन्म पाये हुए को... इनमें से गर्भगत जीव को दृष्टि के भाग को तेज प्राप्त न होने से वह प्राणी जात्यंध होता है... अथवा एक आंख से काणा होता है अथवा लोही में अनुगत होने से रक्ताक्ष होता है, पित्तानुगत पिंगाक्ष, श्लेष्मानुगत शुक्लाक्ष, और वातानुगत विकृताक्ष होता है... तथा जन्म पाने के बाद वातादि से होनेवाला अभिष्यंद याने आंख आना... और इस से आंखों के सभी रोग प्रगट होते हैं... कहा भी है कि- वात, पित्त, कफ और रक्त (लोही) से होनेवाला अभिष्यंद (आंखे आना) चार प्रकार से है... और प्रायः करके आंखों का यह रोग महा भयंकर-घोर है... तथा झिमियं = जास्यता अर्थात् शरीर के छोटे बड़े कोइ भी अवयवों का नियंत्रण खो बैठना (लकवा)... तथा कुणियं = गर्भाधान के दोष से एक पांव (पैर) छोटा होना, अथवा एक हाथ छोटा होना... अथवा एक हाथ न होना... तथा कुब्ज = पृष्ठ आदि में कुब्ज रोग होता है... यह रोग मात-पिता के शोणित एवं शुक्रदोष से गर्भस्थ प्राणी को कुब्ज या वामन दोष से दूषित करता है... कहा भी है कि- गर्भावस्था में यदि मां को वायु का प्रकोप हो, अथवा दोहद का अपमान हो, तब गर्भस्थ जीव कुब्ज, या कुणि, या पंगु, या मूक, या मन्मन होता है... यहां मूक मन्मन जरूर होता है; किंतु मन्मन मूक नहि होता... I सूत्र // 3 // // 188 // 1-6-1-3 ___ उदरिं पास मूयं च सूणीयं च गिलासणिं। वेवई पीढसप्पिं च सिलिवयं महुमहणिं // 188 // // संस्कृत-छाया : उदरिणं पश्य मूकं च शूनत्वं च भस्मको व्याधिः / कम्प पीढसर्पित्वं च श्लीपहं मधुमेहनीम् // 188 //
SR No.004437
Book TitleAcharang Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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