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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1-6-1 - 2(187) 9 छुटने के लिये प्रयत्न करने पर भी उस दुःख के मूल कारण को नहि पहचान शकतें... और दुःखों से छुटकारा भी नहि पा शकतें, अथवा तो मोक्ष के कारण स्वरूप संयमानुष्ठान को प्राप्त नहि कर शकतें... दुःखों से सर्वथा मुक्त न होने पर जीव संसार में विविध प्रकार के रोगादि से पीडित होतें हैं... अतः असाता वेदनीय कर्म के उदय से जीव को होनेवाले सोलह (16) महारोग . तीन गाथाओं से कहते हैं... / v. सूत्रसार : सूत्रक्रमांक 186-187-188-189 चारों सूत्रों का सूत्रसार सूत्रक्रमांक 190 में लिखा गया है। अतः वहां देखियेगा... I सूत्र // 2 // // 187 // 1-6-1-2 * गंडी अहवा कोढी रायसी अवमारियं / काणियं झिमियं चेव, कुणियं खुज्जियं तहा // 187 // संस्कृत-छाया : गण्डी अथवा कुष्ठी राजांसी अपस्मारी। काणितं जास्यता चैव कुणितं कुब्जं तथा // 187 // III सूत्रार्थ : गंडमालादि 1 से 8 महारोग... जो सूत्रांक 186 में लिखे गये है... IV टीका-अनुवाद : - वात-पीत-श्लेष्म एवं संनिपात से होनेवाला गंड रोग चार प्रकार से है... ऐसा गंड रोग जिसको होता है; वह गंडी... अथवा राजांसी अपस्मारी... तथा अट्ठारह प्रकार के कुष्ठ रोग जिसको होता है, वह कुष्ठी... उनमें सात महाकुष्ठ है... वे इस प्रकार- 1. अरुण, 2. उदुंबर, 3. निश्यजिह्व, 4. कपाल, 5. काकनाद. 6. पौंडरीक, 7. कद्रु इन्हें महाकुष्ठ इसलिये कहा है कि- यह सात रोग शरीर के सभी धातुओं में प्रवेश पाकर प्रगट होतें हैं; अत: असाध्य __ तथा ग्यारह लघुकुष्ठ हैं... 1. स्थूलारुष्क, 2. महाकुष्ठ, 3. एककुष्ठ, 4. चर्मदल, 5. परिसर्प, 6. विसर्प, 7. सिध्म, 8. विचर्चिका, 9. किटिभ, 10. पामा, 11. शतारुक... यह ग्यारह कुष्ठरोग प्रयत्नसाध्य होते हैं... सामान्य से कुष्ठरोग वायु की उत्कटता से संनिपात
SR No.004437
Book TitleAcharang Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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