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________________ 314 1 - 9 - 4 - 10 (327) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन - V सूत्रसार : यह हम देख चुके हैं कि- साधु सकल दोषों से निवृत्त होता है। वह कोई ऐसा कार्य नहीं करता जिससे किसी प्राणी को कष्ट होता हो। यहां तक कि- अपने शरीर का निर्वाह करने के लिए भी वह स्वयं भोजन नहीं बनाता। क्योंकि- इसमें पृथ्वी, पानी आदि 6 काय की हिंसा होती है। अतः साधु गृहस्थ के घरों में से निर्दोष आहार की गवेषणा करते हैं। भगवान महावीर भी जब गांव या शहर में भिक्षा के लिए जाते तो वे गृहस्थ ने अपने एवं अपने परिवार के पोषण के लिए बनाए गए आहारादि में से निर्दोष आहार की गवेषणा करते। उसमें भी आहार के 42 दोषों को छोडकर शुद्ध आहार ग्रहण करते और आहार करने के 5 दोषों का त्याग कर आहार करते। इस तरह 47 दोषों का त्याग करके वे आहार करते थे। उसमें 16 उद्गम सम्बन्धी दोष हैं, जो अनुराग एवं मोह वश गृहस्थ द्वारा होते है, 16 उत्पादन के दोष हैं, जो रस लोलुपी साधु द्वारा लगाए जाते हैं और 10 एषणा के दोष हैं, जो गृहस्थ एवं साधु दोनों द्वारा होतें हैं। आहार करते समय के 5 दोष हैं, जिनका सेवन साधु के द्वारा ही अज्ञानता से या मोहमूढता से होता है। प्रस्तुत गाथा में दिए गए विभिन्न पदों से भी इन दोषों की ध्वनि निकलती है। जैसे'परट्ठाए' पद से 16 उद्गमन के दोषों का विवेचन किया गया है। ‘सुविसुद्ध' से 16 उत्पादन दोष का एवं ‘एसिया' पद से 10 एषणा के दोषों का वर्णन किया गया है और 'आयत जोगयाए सेविता' पदों से आहार करते समय के 5 दोषों का वर्णन करके यह कहा गया है कि- प्रभुजी समस्त दोषों से रहित आहार पानी की गवेषणा करते थे, एवं ऐसे शुद्ध एवं निर्दोष आहार को अनासक्त भाव से ग्रहण करके ग्रामानुग्राम विचरण करते थे। इस विषय पर और प्रकाश डालते हुए सूत्रकार महर्षि आगे का सूत्र कहते हैं... सूत्र // 10 // // 327 // 1-9-4-10 / अदु वायसा दिगिंछत्ता जे अन्ने रसेसिणो सत्ता। घाससेसणाए चिट्ठन्ति सयय निवइए य पेहाए // 327 // // संस्कृत-छाया : अथ वायसा बुभुक्षार्ताः ये चान्ये रसैषिणः सत्त्वाः। ग्रासैषणार्थं तिष्ठन्ति सततं निपतितान् च प्रेक्ष्य // 327 //
SR No.004437
Book TitleAcharang Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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