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________________ 310 ॥१-९-४-६(323)卐 श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन कहते हैं... I सूत्र // 6 // // 323 // 1-9-4-6 अवि साहिए दुवे मासे अदुवा छप्पिमासे विहरित्था। राओवरायं अपडिन्ने अन्न गिलायमेगया भुंजे // 323 // II संस्कृत-छाया : अपि साधिकं द्वयं मासं, षडपि मासान् अथवा विहृतवान् / रात्रोपरात्रं अप्रतिज्ञः, पर्युषितं च एकदा भुक्तवान् // 323 // III सूत्रार्थ : भगवान महावीर ने दो मास से कुछ अधिक समय तक अथवा दो महिने से लेकर 6 महीने पर्यंत बिना पानी पिये समय व्यतीत किया। वे पानी पीने की इच्छा से रहित होकर रात-दिन धर्म ध्यान में संलग्न रहते थे। भगवान ने एक बार पर्युषित-अन्न पक्वान्न-खाखरा आदि कल्पनीय आहार ग्रहण किया। IV टीका-अनुवाद : अथवा दो महिने पर्यंत या यावत् छह महिने पर्यंत परमात्मा जल पीये बिना हि विचरतें थे.,, क्योंकि- निर्दोष अचित्त जल भी पीने की उन्हें ऐसी तीव्र उत्कंठा नहि थी... तथा एकदा पर्युषित (असार) रुक्ष खाखरा आदि आहार ग्रहण कीया था... V माधुसूत्रसार : शिथिलात प्रस्तुत गाथा से यह स्पष्ट होता है कि- भगवान ने सर्वोत्कृष्ट 6 महीने की तपश्चर्या की थी। भगवान ने इतनी लम्बी तपश्चर्या में पानी का भी सेवन नहीं किया। इससे स्पष्ट होता है कि- भगवान ने जितनी तपश्चर्या की थी, उसमें पानी नहीं पिया था अर्थात् चोवीहार तप करते थे। और इस तप साधना के समय एक बार भगवान ने पर्युषित-पहले दिन का बना हुआ पक्वान्न या खाखरा आदि आहार ग्रहण किया था। यही सम्बन्ध बना र . इस गाथा से यह भी स्पष्ट होता है कि- भगवान ने जितना भी तप किया था, वह सब निदान रहित किया था। उनके मन में स्वर्ग आदि की कोई आकांक्षा नहीं थी। उनका . मुख्य उद्देश्य केवल कर्मों की निर्जरा करना था। उन्होंने आगम में तप आदि की साधना के लिए जो आदेश दिया है, उस पर पहले स्वयं ने आचरण किया। आगम में कहा गया है कि- मुमुक्षु पुरुष को न इस लोक के सुखों की आकांक्षा से तप करना चाहिए, न परलोक
SR No.004437
Book TitleAcharang Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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