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________________ 298 // 1-9-3-12(315) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन - // संस्कृत-छाया : मांसानि छिन्नपूर्वाणि, अवष्टभ्य एकदा कायं। परीषहाः च अलुञ्चिषुः अथवा पांसुना अवकीर्णवन्तः // 314 // III सूत्रार्थ : उस अनार्य देश में वहां के लोगों ने किसी समय ध्यानस्थ खडे भगवान को पकड कर उनके शरीर के मांस को काटा उन्हें विविध प्रकार के परीषहोपसर्गों से पीडित किया, और उन पर धूल फेंकते रहे। IV टीका-अनुवाद : वहां के अनार्य लोगों ने परमात्मा के शरीर में से मांस निकाला... अरे ! एक बार तो कितनेक लोग परमात्मा के शरीर पे विविध प्रकार के अनेक प्रतिकूल उपसर्ग कीये थे... और धूली से प्रभूजी को ढांक दीया... I सूत्र // 12 // // 315 // 1-9-3-12 उच्चालइय निहणिंसु, अदुवा आसणाउ खलइंसु। . . वोसट्ठकाय पणयाऽऽसी दुक्खसहे भगवं अपडिन्ने // 315 // ,' // संस्कृत-छाया : . उत्क्षिप्य निहतवन्तः, अथवा आसनात् स्खलितवन्तः। व्युत्सृष्टकायः प्रणतः आसीत्, दुःखसहः भगवान् अप्रतिज्ञः // 315 // III सूत्रार्थ : ___ कभी कभी वे लोग भगवान को ऊंचे उठाकर नीचे फेंकते, कभी धक्का मार कर आसन से दूर फेंक देते, परन्तु काया के ममत्व को त्याग कर परीषह जन्य वेदनाओं को समता पूर्वक सहन करने वाले अप्रतिज्ञ श्रमण भगवान महावीर, अपने ध्यान से विचलित नहीं हुए। IV टीका-अनुवाद : अरे ! कई बार तो वहां के अनार्य लोगों ने परमात्मा को उठाकर भूमी पे पछाडा (फेंका) था... तथा गोदोहिकासन, उत्कटुकासन और वीरासन में बैठे हुए प्रभुजी को धक्का देकर गिरा देते थे... उस समय परमात्मा क्रोध नहिं करतें, किंतु परीषह एवं उपसर्गों को सहन करने के लिये सावधान होकर पुनः स्वस्थता के साथ धर्मध्यान में लीन होते थे...
SR No.004437
Book TitleAcharang Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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