________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1 - 9 - 3 - 11 (314) 297 III * सूत्रार्थ : उस लाढ़ देश में ग्राम से बाहर ठहरे हुए श्रमण भगवान महावीर को अनार्य लोग पहले तो डण्डों, कुन्त फलक पत्थर और ठोकरों से मारते और उसके पश्चात् शोर मचाते कि- अरे लोगो ! आओ, देखो ! यह शिरमुण्डित नग्न व्यक्ति कौन है ? IV टीका-अनुवाद : जब कभी परमात्मा गांव के बाहार शून्यगृह आदि वसति में काउस्सग्ग ध्यान करतें थें तब वहां के लोग दंडे से या मुष्टि से या कुंत (भाले) से या लेष्ट से या कपाल याने घडे के ठिकरे से प्रभुजी को मार कर जोर जोर से चिल्लातें थें कि- “देखो ! देखो ! इस साधु का हमने कैसा हाल कीया ?" इत्यादि प्रकार से कलकलारव करते थे... v सूत्रसार : प्रस्तुत उभय गाथाओं में अनार्य लोगों के अशिष्ट व्यवहार का दिग्दर्शन कराया गया है। इसमें बताया है कि- जब भगवान विहार करते हुए रात को ठहरने के लिए या मध्याह्न भिक्षा के लिए गांव में जाते तो उस समय वहां के निवासी लोग भगवान का उपहास करते, उन्हें मारते-पीटते और अपने गांव से बाहर चले जाने को कहते। उनके द्वारा किए गए प्रहार एवं अपमान का भगवान कोई उत्तर नहीं देते, वे मौन भाव से उन परीषहों को सहन करते हुए विचरण करते थे। - जब भगवान एकान्त स्थान में ध्यानस्थ होते तो उस समय लाढ़ देश के अनार्य लोग डण्डा लेकर वहां पहुंच जाते और भगवान को डण्डे से पीटते और इधर-उधर राह चलते लोगों को इकट्ठा करके हल्ला मचाते और कहते देखो यह विचित्र व्यक्ति कौन है ? इस तरह वे अज्ञानी लोग भगवान को अनेक कष्ट देते; फिर भी भगवान उन पर रोष नहीं करते। कितना धैर्य था उनके जीवन में ? एवं सहनशीलता भी कितनी असीम थी ? / वास्तव में सहिष्णुता के द्वारा ही साधक परीषहों पर विजय प्राप्त करके निष्कर्म बन सकता है। भगवान की कष्ट सहिष्णुता का वर्णन करते हुए सूत्रकार महर्षि आगे का सूत्र कहते हैं... I सूत्र // 11 // // 314 // 1-9-3-11 मंसाणि छिन्नपुव्वाणि, उट्ठभिया एगया कायं / परिसहाई लुंचिंसु, अदुवा पंसुणा उवकरिंसु // 314 //