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________________ 2687 1 - 9 - 2 -2 (289) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन II संस्कृत-छाया : आवेशनसभाप्रपासु, पण्यशालासु एकदा वासः। अथवा कर्म स्थानेषु, पलालपुंजेषु एकदा वासः // 289 // III सूत्रार्थ : ___भगवान महावीर ने शून्य घर में, सभा भवन में, जल के प्याऊ में, दुकान में, लुहार की शाला में या जहां पलाल का समूह एकत्रित कर रखा हो ऐसे स्थान में निवास किया, अर्थात् ऐसे विभिन्न स्थानों में विहार-चर्चा में विचरते हुए भगवान महावीर ठहरे थे। IV टीका-अनुवाद : / प्रथम सूत्र में पुछे गये प्रश्न का उत्तर देते हुए श्री सुधर्मस्वामीजी कहते हैं कि- हे जंबू ! श्रमण भगवान् श्री महावीरस्वामीजी को आहार के अभिंग्रह की तरह प्रतिमा विशेष को छोडकर शय्या के विषय में प्रायः कोइ अभिग्रह नहि थे... किंतु जहां कहिं भी चरम (अंतिम) पोरसी होती थी, वहां प्राप्तवसति में अनुज्ञा लेकर प्रभुजी कायोत्सर्ग ध्यान में खडे रहते थे... वह स्थान कभी आवेशन स्वरूप शून्यगृह, या सभागृह हो, प्रपा याने जल की परब हो, या पण्यशाला याने बाजार (दुकानें) हो अथवा तो लुहार की लोहशाला हो, या सुथार का घर हो, कोइ भी स्थान में प्रभुजी वसति ले कर के कायोत्सर्ग ध्यान में लीन रहते थे... सूत्रसार : प्रस्तुत गाथा में उस युग के निवास स्थानों का वर्णन किया गया है जिन में लोग रहते थे या पथिक विश्राम लेते थे। शून्य घर-जिस मकान में कोई न रहता हो तो उसे शून्य घर कहते हैं। आज कई प्राचीन शहरों एवं जंगलों में शून्य खण्डहर एवं मकान मिलते हैं। भगवान महावीर भी कभी ऐसे स्थानों में ठहर जाते थे। ये स्थान एकान्त एवं स्त्री-पशु आदि से रहित होने के कारण साधना एवं आत्मचिन्तन में अनुकूल होते हैं। सभा-गाव या शहर के लोगों के विचार-विमर्श करने के लिए एक सार्वजनिक स्थान होता था। बाहर गांवों से आने वाले यात्री भी उसमें ठहर जाते थे। आज भी अनेक गांवों में पथ से गुजरते हुए पथिकों के ठहरने के लिए एक स्थान बना होता है और शहरों में ऐसे स्थानों को धर्मशाला कहते हैं। उस युग में उसे सभा कहते थे। भगवान
SR No.004437
Book TitleAcharang Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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