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________________ 246 // 1 - 9 - 1 - 11 (275) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन भगवान की निस्पृहता का उल्लेख करते हुए सूत्रकार महर्षि आगे का सूत्र कहते है... सूत्र // 11 // // 275 // 1-9-1-11 अवि साहिये दुवे वासे सीओदं अमुच्चा निक्खंते / एगत्तगए पिहियच्चे से अहिन्नाय दंसणे संते // 275 // II संस्कृत-छाया अपि साधिके द्वे वर्षे, शीतोदकमभुक्त्वा निष्क्रान्तः / एकत्वगतः पिहितार्चः सः अभिज्ञातदर्शन: शान्तः // 275 // III सूत्रार्थ : दो वर्ष से कुछ अधिक समय तक गृहस्थ जीवन में रहते हुए महावीरस्वामीजी सचित्त जल का उपयोग नहि करते थे। और उन्होंने एकत्व भावना में संलग्न रहते हुए क्रोध की ज्वाला को शान्त किया था, अतः ज्ञान दर्शन से युक्त, शुद्ध अन्त:करण वाले और शान्तचित्तवाले भगवान महावीर गृहवास में विचरते थे। IV टीका-अनुवाद : अब जब दो वर्ष बीत चूके तब बंधुजनों का वचन परिपूर्ण हुआ, और अवधिज्ञान से अपने निष्क्रमण का अवसर जानकर तथा संसार की असारता को पहचानकर महावीरस्वामीजी तीर्थ प्रवर्तन के लिये सावधान बने... वह इस प्रकार... बंधुजनों के आग्रह से महावीरस्वामीजी दो वर्ष से कुछ अधिक समय पर्यंत घर में रहे, किंतु इस काल के दरम्यान परमात्मा ने सचित्त जल का पान नहि कीया, अर्थात् अचित्त जल का पान करते थे और अन्य हाथ-पैर धोने की क्रिया भी अचित्त जल से हि करते थे... यहां महावीरस्वामीजी ने जिस प्रकार प्राणातिपात का त्याग कीया था, उसी प्रकार शेष व्रतों का भी पालन कीया था... अतः घरवास के अंतिम दो वर्ष में महावीरस्वामीजी एकत्व भावना से भावित अंत:करणवाले होने से उन्हों ने विषय-सुखों के त्याग के साथ साथ क्रोधादि कषायों का भी त्याग कीया था... अवधिज्ञानी श्री महावीरस्वामीजी सम्यक्त्व भावना से भावित अंत:करणवाले थे, शांत . थे और पांच इंद्रिय एवं मन के विकारों से रहित थे, अतः हम कहते हैं कि- हे शिष्य ! गृहवास में भी महावीरस्वामीजी ऐसे शांत उपशांत एवं सावद्यारंभ के त्यागी थे, तो फिर प्रव्रज्या ग्रहण करने के बाद की तो बात हि क्या कहें ? अर्थात् प्रव्रज्या ग्रहण करने के बाद वे संयम
SR No.004437
Book TitleAcharang Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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