SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 254
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 卐 1 - 9 - 0 - 0 // 225 1. सर्व प्रथम बादर मनोयोग का रूंधन करतें हैं 2. उसके बाद बादर वचनयोग का रूंधन करतें हैं 3. उसके बाद बादर काययोग का रूंधन करतें हैं 4. उसके बाद सूक्ष्म मनोयोग का रूंधन करतें हैं 5. उसके बाद सूक्ष्म वचनयोग का रूंधन करतें हैं 6. उसके बाद सूक्ष्म काययोग का रूंधन करतें हैं सूक्ष्म काययोग का निरोध करने के समय वह केवलज्ञानी भगवान् सूक्ष्मक्रिया अप्रतिपाति नाम के शुक्लध्यान के तृतीय पाये में प्रवेश करते हैं... शुक्लध्यान के तृतीय चरण सूक्ष्मक्रिया अप्रतिपाति का ध्यान पूर्ण होने के बाद व्युपरत क्रिया अनिवर्त्ति नाम के चौथे चरण (पाये) में प्रवेश करते हैं यहां संपूर्ण प्रकार से योगों का निरोध हो चूका है, अत: वह केवलज्ञानी अब अयोगिकेवली नाम के चौदहवे (14) गुण स्थानक में बिराजमान हो चूके हैं... अयोगिकेवली नाम के चौदहवे गुणस्थानक का जघन्य एवं उत्कृष्ट, से काल अंतर्मुहूर्त मात्र है... यहां वे अयोगिकेवली भगवान बारह कर्मो का वेदन करतें हैं, अन्य आचार्यों के मत से मनुष्यानुपूर्वी के साथ तेरह (13) कर्मो का वेदन करतें ___ पांच हृस्वाक्षर उच्चारण काल याने पांच मात्रा प्रमाण कालवाले इस चौदहवे गुणस्थानक में रहे हुए वे केवलज्ञानी भगवान्, सत्तागत जिस कर्मप्रकृतियों का उदय नहि है, उन्हे वेद्यमान ऐसी अन्य प्रकृतियों में संक्रमण के द्वारा संक्रमित कर के क्षय करतें हैं... यह कार्य उपांत्य याने द्विचरम समय में होता है... अब द्विचरसमय याने उपान्त्य समय के अंत में 73 कर्मो का अभाव होता है, उन में देवगति के साथ रहनेवाली कर्मप्रकृतियां दश है... 1. देवगति, 2. देवानुपूर्वी, 3. वैक्रिय शरीर, 4. वैक्रिय अंगोपांग, 5. आहारक शरीर, 6. आहारक अंगोपांग, 7. वैक्रियबंधन, 8. वैक्रिय संघातन, 9. आहारक बंधन, 10. आहारक संघातन, तथा और अन्य भी- 11. औदारिक शरीर, 12. औदारिक अंगोपांग, 13. औदारिक बंधन, 14. औदारिक संघातन, 15. तैजस शरीर, 16. तैजस बंधन, 17. तैजस संघातन, 18. कार्मण शरीर, 19. कार्मण बंधन, 20. कार्मण संघातन, 21-26. छह (6) संघयण, 27-32. छह (6) संस्थान, 3337. पांच वर्ण, 38-39. दो गंध, 40-44. पांच रस, 45-52. आठ स्पर्श, 53. मनुष्य आनुपूर्वी, 54. अगुरुलघु, 55. उपघात, 56. पराघात, 57. उच्छ्वास, 58. शुभ विहायोगति, 59. अशुभ विहायोगति, 60. अपर्याप्तक, 61. प्रत्येक, 62. स्थिर, 63. अस्थिर, 54. शुभ, 65. अशुभ, 66. दुर्भग, 67. सुस्वर, 68. दुःस्वर, 69. अनादेय, 70. अपयश:कीर्ति,
SR No.004437
Book TitleAcharang Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy