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________________ 226 // 1-9-1-1(265) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन 71. निर्माण, 72. नीच गोत्र, 73. साता या असाता कोइ भी एक वेदनीय, इत्यादि सभी मीलाकर यहां 73 कर्मो का क्षय होता है... तथा अंतिम समय में 1. मनुष्य गति नाम कर्म, 2. पंचेंद्रियजाति, 3. त्रस, 4. बादर, 5. पर्याप्तक, 6. सुभग, 7. आदेय, 8. यश:कीर्ति, 9. तीर्थंकरनामकर्म, 10. साता या असाता कोइ भी अवशिष्ट एक वेदनीय, 11, मनुष्य आयुष्य, और 12. उच्च गोत्र... केवलज्ञानी तीर्थंकर परमात्मा अंतिम समय में यह बारह (12) कर्मो का क्षय करते हैं... कितनेक आचार्यों के मत से मनुष्यानुपूर्वी के साथे तेरह (13) कर्मो का क्षय माना गया है... और सामन्य केवलज्ञानी ग्यारह (11) कर्म और मतांतर से बारह (12) कर्मो का क्षय करतें हैं... सकल कर्मो का क्षय होने के बाद उसी क्षण (समय) वह परम पवित्र शुद्ध आत्मा अस्पृशद्गति से सिद्धिगति नाम के लोकाग्र स्थान को प्राप्त करता है... जहां एकांत याने निश्चित, अत्यंत याने संपूर्ण और अनाबाध याने पीडा रहित, सहज आत्मिक सुख का हि एक मात्र अनुभव वेदन है... यहां तक नि. गाथा क्रमांक 284 का तात्पर्यार्थ जानीयेगा... अब उपोद्घात का उपसंहार एवं इस आचारांग सूत्र में कहे गये साधु-आचार का तीर्थंकर परमात्मा ने स्वयं आसेवन कीया है, यह बात कहते हैं.... नि. 285 यहां आचारांगसूत्र में कहे गये पंचाचार का आसेवन तीर्थंकर परमात्मा श्री महावीर स्वामीजी ने स्वयमेव कीया है, अत: इस ग्रंथ में कहे गये आचार का परिपालन कर के धीर गंभीर साधुजन निरुपद्रव एवं अचल ऐसे निर्वाण पद को प्राप्त करते हैं... उपधान भाव निक्षेप स्वरूप ज्ञानादि अथवा तपश्चर्या का स्वयं वर्धमान स्वामीजी ने जीवन में आदर कीया है और परिपालन भी कीया है, अतः अन्य मुमुक्षु भव्य जीवों को ग्रंथकार महर्षि नम्र निवेदक करतें हैं कि- इस आचारांग ग्रंथ में कहे गये आचार का आदर एवं परिपालन करे... यहां ब्रह्मचर्य अध्ययन स्वरूप प्रथम श्रुतस्कंध की नियुक्ति परिपूर्ण हुइ... अब सूत्रानुगम द्वार के प्रसंग में प्राप्त सूत्र का यथाविधि उच्चारण करना चाहिये... वह सूत्र यह है... इति नवमाध्ययने उपक्रम एवं निक्षेप...
SR No.004437
Book TitleAcharang Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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